।। श्रीहरिः ।।


 
आजकी शुभ तिथि–
श्रावण शुक्ल तृतीया, वि.सं.–२०७०, शुक्रवार
देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम
 
 

(गत ब्लॉगसे आगेका)
      ईश्वर और प्रकृतिके द्वारा प्रदत्त उत्पादक-शक्तिका नाश कर देना महान् विनाशकारक है । सम्पूर्ण योनियोंमें सर्वश्रेष्ठ मनुष्ययोनिकी उत्पादक-शक्तिका ही निषेध करेंगे तो उन्नति कैसे होगी ? परिणाममें पतन ही होगा । मनुष्योंमें भी हिन्दू जाति सर्वश्रेष्ठ है । इसमें बड़े विलक्षण-विलक्षण ऋषि-मुनि, सन्त-महात्मा, दार्शनिक, वैज्ञानिक, विचारक पैदा होते आये हैं । जब इस जातिके मनुष्योंको जन्म ही नहीं लेने देंगे, तो फिर ऐसे श्रेष्ठ, विलक्षण पुरुष कैसे और कहाँ पैदा होंगे ?
 
     विचार करें, एक ओर तो हम देशकी उन्नतिके लिए उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं, दूसरी ओर हम उत्पादक-शक्ति पर रोक लगा रहे हैं ! जब उत्पादक ही नहीं रहेगा, तो फिर उत्पादन कैसे होगा ? जैसे भोजनालय में ज्यादा आदमी आ जायँ तो हमारा काम ज्यादा रसोई बनाना है, न कि आदमियोंको आनेसे रोकना । ऐसे ही जनसंख्या बढ़ती है तो बुद्धिमानी इसी बातमें है कि उत्पादन अधिक बढ़ाया जाय, न कि मनुष्योंको जन्म लेनेसे रोक दिया जाय ! आज भी खेतोंमें काम करनेवाले आदमियोंकी कमी हो रही है । जब एक या दो ही सन्तान होगी तो घरका काम ही पूरा नहीं होगा, फिर कौन खेती करेगा ? कौन बूढ़े माँ-बापकी सेवा करेगा ? कौन समाजकी सेवा करेगा ? कौन सेनामें भरती होगा ? कौन कला-कौशल सीखेगा और कौन सिखायेगा ? कौन वैज्ञानिक बनेगा ? कौन फैक्ट्रियाँ चलाएगा ? कौन नया-नया आविष्कार करेगा ? कौन शास्त्रोंका पण्डित बनेगा? परिणाममें क्या दशा होगी−इस पर विचार करनेसे रोंगटे खड़े हो जाते हैं !
 
       मृत्युको कोई रोक नहीं सकता । जन्म लेनेके बाद मरना जितना अवश्यम्भावी है, उतना दूसरा कोई भी काम अवश्यम्भावी नहीं है । बालक जन्म लेता है तो वह बड़ा होगा कि नहीं होगा, पढ़ेगा कि नहीं पढ़ेगा; व्यापार, नौकरी आदि करेगा कि नहीं करेगा; डॉक्टर, इंजीनियर आदि बनेगा कि नहीं बनेगा, धनी होगा कि नहीं होगा, विवाह करेगा कि नहीं करेगा, उसकी सन्तान होगी कि नहीं होगी आदि सब बातों में सन्देह है, पर वह मरेगा कि नहीं मरेगा–इस बातमें कोई सन्देह नहीं है । वह मरेगा ही । ऐसी अवश्यम्भावी मौत हर समय खुली है । ऐसा कोई वर्ष, महीना, दिन, घण्टा, मिनट अथवा सेकेण्ड नहीं है, जिसमें कोई मनुष्य मरता न हो । बालक भी मरतें हैं, जवान भी मरते हैं और बूढ़े भी मरते हैं । रोगी भी मरते हैं और निरोग भी मरते हैं । मैंने सुना है कि एक गाँवमें किसीके दो लड़के थे । वे दोनों ही मर गये और बूढ़े माँ-बापको पानी पिलानेवाला भी कोई नहीं है ! एकके छ:-सात लड़के थे, पर उनमें एक ही जीवीत रहा, बाकी सब मर गये ! विचार करें, जो एक-दो सन्तानके बाद नसबन्दी, ऑपरेशन करवा लेते हैं, उनकी सन्तान अगर प्रारब्धवश जीवित न रहे तो क्या दशा होगी !
 
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
−‘देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम’ पुस्तकसे