(गत
ब्लॉगसे
आगेका)
भीष्मजी
कौरवसेनाकी
रक्षा
करनेवाले थे−
‘अपर्याप्तं
तदस्माकं
बलं
भीष्माभिरक्षितम्’
(गीता १/१०);
परन्तु
दुर्योधन
उनकी रक्षा
करनेके लिये
अपनी सेनाको
आदेश देता है−‘भीष्ममेवाभिरक्षन्तु
भवन्तः सर्व
एव हि’ (गीता १/११) । कारण कि
दुर्योधन जानता
था कि
शिखण्डीके
सामने आनेपर
भीष्मजी उसपर
कभी शस्त्र
नहीं
चलायेंगे,
भले ही अपने
प्राण चले
जायँ !
शिखण्डी
पहले स्त्री
था,
वर्तमानमें
नहीं; परन्तु
वर्तमानमें
पुरुषरूपसे
होनेपर भी
भीष्मजी
उसको स्त्री
ही मानते हैं
और उसपर
शस्त्र नहीं
चलाते,
प्रत्युत
मरना
स्वीकार कर
लेते हैं−यह
स्त्री-जातिका
कितना
सम्मान है !
थोड़े
वर्ष पहलेकी
बात है । एक
बार
जोधपुरके
राजा सर
उम्मेदसिंहजी
और बीकानेरके
राजा
शार्दूलसिंहजी
शिकारके लिये
जंगल गये ।
वहाँ
शार्दूलसिंहजीकी
गोली पैरमें
लगनेसे एक
सिंहनी घायल
हो गयी । घायल
होकर वह
गुर्राती
हुई उनकी तरफ
आयी तो
उम्मेदसिंहजीने
कहा−‘हीरा ! यह
क्या किया ? यह
तो मादा है !’
पता लगनेपर उन्होंने
पुनः उसपर
गोली नहीं
चलायी और खुद
चेष्टा करके
उससे अपना
बचाव किया ।
यह नारी-जातिका
कितना
सम्मान है !
शास्त्रोंने
पुरुषोंके
लिये तो
सन्ध्योपासना,
अग्निहोत्र,
यज्ञ, वेदपाठ
आदि कई
कर्तव्य-कर्म
बताये हैं, पर
स्त्रियोंको
उन सब
कर्तव्य-कर्मोंसे,
पितृऋण आदि
ऋणोंसे मुक्त
रखा है और
उसको पतिके
आधे पुण्यकी
भागीदार
बनाया है ।
परन्तु शास्त्रको
न जाननेवाले
इस विषयको
क्या समझें ?
आज
स्त्रियोंको
उनके कर्तव्यसे
विमुख करके
अनेक
झंझटोंमें
फँसाया जा रहा
है । शास्त्रोंने
केवल
पुरुषको ही
यज्ञोपवीत धारण
करके
सन्ध्योपासना
आदि विशेष
कर्मोंको
करनेकी आज्ञा
दी है । परन्तु
आज स्त्रीको
यज्ञोपवीत देकर उसको उलटे
आफतमें डाला
जा रहा है !
क्या यह
बुद्धिमानीकी
बात है ? पत्नी
पतिके
द्वारा किये
गये पुण्य-कर्मोंकी
भागीदार तो
होती है, पर
पाप-कर्मोंकी
भागीदार
नहीं होती ।
उसको
मुफ्तमें
आधा पुण्य
मिलता है ।
समाजमें भी देखा
जाता है कि
अगर डॉक्टर,
पण्डित
आदिकी पत्नी
अनपढ़ हो तो भी
वह डॉक्टरनी,
पण्डितानी
आदि कहलाती
है !
वास्तवमें
आज अभिमानको
मुख्यता दी
जा रही है,
इसलिए
नम्रता बढ़ानेकी
बात न कहकर
अभिमान
बढ़ानेकी बात
ही कही और
सिखायी जा
रही है, जो कि
पतनका हेतु
है । ‘पुरुष
ऐसा करते है
तो हम क्यों न
करें ? हम पीछे क्यों
रहें ?’−यह
केवल अभिमान
बढ़ानेकी बात
है । अभिमान
जन्म-मरणका
मूल और अनेक
प्रकारके
क्लेशों तथा
समस्त
शोकोंका
देनेवाला है−
संसृति मूल सूलप्रद नाना ।
सकल सोक
दायक
अभिमाना ॥
(मानस.
उत्तर. ७४/३)
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
−‘देशकी
वर्तमान दशा
और उसका
परिणाम’
पुस्तकसे
|