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आगेका)
(३) चोरीकी
वृद्धि− देशमें
चोरी भी बहुत
बढ़ रही है ।
सरकारने
बहुत ज्यादा
टैक्स लगा
दिये और ऐसे कानून
बना दिये,
जिनसे
बचनेके लिये लोगोंने
चोरी करनेके
तरह-तरहके
रास्ते खोज
लिये हैं ।
वकील भी
टैक्सकी
चोरीके
तरीके बताते
हैं । सरकारने
ज्यादा
टैक्स इसलिये
लगाये कि
धनियोंका धन
हमारे
हाथमें आ जाय ।
परन्तु धन तो
मिला नहीं,
उलटे धनीलोगोंको
बेईमान बना
दिया ! धनीलोग
भी ऐसे होशियार
हैं कि सरकार
फिरे डाल-डाल
तो ये फिरें
पात-पात ! सरकार
कितने ही
कानून बनाये,
पर ये
कोई-न-कोई उपाय
निकाल ही
लेते हैं । इस
तरह सरकार और
जनता—दोनोंमें
ही अनैतिकता,
अधर्म, अन्याय
बढ़ रहा है ।
जिस
गतिसे चोरी
बढ़ रही है, ऐसे
बढ़ती रही तो
समाजमें
लूट-मार शुरू
हो जायगी ।
जैसे बड़ी
मछली छोटी
मछलीको खा
जाती है, ऐसे ही
बलवान् लोग
निर्बलोंको
लूटने
लगेंगे । चोर-डाकुओंकी
संख्या अधिक
होनेसे उनका
वोट अधिक
होगा, जिससे
राज्य भी ऐसे
ही लोगोंके
हाथमें चला
जायगा । अभी
भी ऐसी दशा हो
रही है कि
किरायेदार
मकानका
मालिक बन
बैठता है, खेत
बोनेवाला
खेतका मालिक
बन बैठता है,
आदि-आदि ।
प्राचीन
कालमें एक
समय महाराज
अश्वपतिने
कहा था—
न मे स्तेनो जनपदे न कदर्यो न मद्यपः ।
नानाहिताग्निर्नाविद्वान्न
स्वैरी
स्वैरिणी
कुतः ॥
(छान्दोग्योपनिषद
५/११/५)
‘मेरे
राज्यमें न
तो कोई चोर है,
न कोई कृपण है,
न कोई मदिरा
पीनेवाला है,
न कोई
अनाहिताग्नि
(अग्निहोत्र
न करनेवाला)
है, न कोई
अविद्वान्
है और न कोई
परस्त्रीगामी
ही है, फिर कुलटा
स्त्री
(वेश्या) तो
होगी ही कैसे ?’
परन्तु
अब इससे उलटी
स्थिति हो
रही है
अर्थात् चोर,
कृपण, मदिरा
पीनेवाला,
अनाहिताग्नि,
परस्त्रीगामी
और वेश्या—इनकी
ही मुख्यता
हो रही है ।
व्यभिचार,
हिंसा और
चोरी—इन
तीनोंके
बढ़नेका
परिणाम बहुत
भयंकर होगा ।
कितना भयंकर
होगा—इसका हम
अनुमान नहीं
कर सकते ।
शास्त्रमें
आया है—
अपूज्य
यत्र
पूज्यन्ते
पूज्यपूजाव्यतिक्रमः
।
त्रीणि
तत्र प्रजायन्ते
दुर्भिक्षं
मरणं भयम् ॥
(स्कन्दपुराण,
मा॰के॰३/४८)
‘जहाँ
अपूज्य
व्यक्तियोंका
पूजन होता है
और पूज्य
व्यक्तियोंका
तिरस्कार होता
है, वहाँ तीन
बातें अवश्य
होती हैं—अकाल,
मृत्यु और भय ।’
भूमण्डलपर
भारत-भूमिका
एक विशेष
प्रभाव है, जो
प्रत्यक्ष
देखनेमें
नहीं आता । इस
भूमिमें
ऋषि-मुनियोंकी
बहुत शक्ति
है । यह देश
दुनियामात्रका
जीवन है, हित
करनेवाला है ।
अतः भारतके
पतनसे
भूमण्डलके
सब लोगोंका
पतन है, अहित
है । अभी जो
हो रहा है, यह
एक भयंकर
महाभारतकी,
महान्
संहारकी
तैयारी है ।
इसके बिना
सुधारका,
शान्तिका
कोई उपाय भी
नहीं दिखता !
जब लोगोंका
भीषण संहार
होगा, शक्ति और
सम्पत्तिका
विनाश होगा,
तभी
शान्तिकी
स्थापना हो
सकेगी ।
नारायण !
नारायण !!
नारायण !!!
−‘देशकी
वर्तमान दशा
और उसका
परिणाम’
पुस्तकसे
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