Sep
30
सर्वोच्च पदकी प्राप्तिका साधन-प्राप्त सामर्थ्यका सदुपयोग
विचार
करें ! धन आदि
पदार्थोंमें
जो सुख दिखलायी
देता है एवं
हम उनसे सुखकी
आशा करते हैं, तो क्या
उनमें पूरा
सुख है ?
क्या
उनके
सम्बन्धसे
कभी दुःख
होता ही नहीं ?
क्या
वे सदा साथ
रहेंगे ?
क्या
उन
पदार्थोंके
रहते हुए
दुःख होता ही
नहीं ? ऐसा तो हो
ही नहीं सकता;
प्रत्युत
उन
पदार्थोंके
सम्बन्धसे–उनको अपने माननेसे
लोभ-जैसा
नरक-द्वाररूप
भयंकर दोष उत्पन्न
हो जाता है, जो जीतेजी
आगकी तरह
जलाता ही
रहता है और
मरनेपर सर्प
आदि दुःखमयी
योनियों तथा
महान् यन्त्रणामय
नरकोंमें ले
जाता है ।
विचार
करें ! आप अपने
कुटुम्बके
लोगोंसे एवं
अन्य
प्राणियोंसे
सुख चाहते
हैं, तो क्या
वे सभी सुखी
हैं ? क्या कभी
दुःखी नहीं
होते ? क्या वे
सभी सबके
अनुकूल होते
भी हैं ?
क्या
वे सभी आपके
साथ रहते भी
हैं ? क्या
रहना चाहते
भी हैं ?
क्या
वे सभी आपके
साथ रह भी
सकते हैं ?
क्या
पहलेवाले
साथी सभी
आपके साथ हैं ?
क्या
उनके
मनोंमें और
शरीरोंमें
परिवर्तन
नहीं होता ?
क्या
उनमेंसे
किसीके
मनमें किसी
प्रकारकी कमीका
बोध नहीं
होता ? क्या वे
सर्वदा
सर्वथा
पूर्ण हैं ?
क्या
वे कभी
किसीसे कुछ
भी नहीं
चाहते हैं ?
कम-से-कम
आपसे तो कुछ
नहीं चाहते
होंगे ? सोचिये !
जो दूसरोंसे
अपने लिये
कुछ भी चाहता है, क्या वह
दूसरोंकी
चाह पूरी कर
सकता है ? क्या स्वयं
सुख
चाहनेवाला
औरोंको सुख
दे सकता है ?
चेत
करें ! सबका हर
समय वियोग हो
रहा है । आयु
पल-पलमें घट
रही है ।
मृत्यु
प्रतिक्षण
समीप आ रही है
। ये बातें
क्या
विचारसे
नहीं
दिखलायी
देती हैं ?
यदि
कहें कि ‘हाँ
दिखलायी
देती हैं ।’
तो
ठीक तरहसे
क्यों नहीं
देखते ? कब
देखेंगे ?
किसकी
प्रतीक्षा
करते हैं ?
क्या
इस मोहमें
पड़े रहनेसे
आपको अपना
हित दिखलायी
देता है ?
यदि
नहीं तो आपका
हित कौन
करेगा ? किसके
भरोसे
निश्चिन्त
बैठे हैं ?
ऐसे
कबतक काम
चलेगा ? कभी सोचा
है; नहीं तो
कब सोचेंगे ?
आपका
सच्चा साथी
कौन है ?
क्या
यह शरीर,
जिसे
आप मेरा
कहते-कहते ‘मैं’
भी
कह देते हैं,
आपकी
इच्छाके
अनुसार
नीरोग रहेगा ?
क्या
जैसा चाहें,
वैसा
काम देगा ?
क्या
सदा साथ
रहेगा, मरेगा
नहीं ? इस ओर
आपने अपनी
विवेक-दृष्टिसे
देखा भी है ?
कब
देखेंगे ?
क्या
इस विषयमें
अपरिचित ही
रहना है ?
क्या
यह
बुद्धिमानी
है ? क्या
इसका परिणाम
और कोई
भोगेगा ?
चेत
करें ! पहले आप
जिन
पदार्थों और
कुटुम्बियोंके
साथ रहे हैं, वे सब आज हैं
क्या ? एवं आज
जो आपके साथ
हैं, वे
रहेंगे क्या ? वे सब-के-सब
सदा साथ रह
सकते हैं
क्या ? थोड़ा
ध्यान देकर
विचार करें !
(शेष
आगेके
ब्लॉगमें)
‒
‘सर्वोच्च
पदकी
प्राप्तिका
साधन’
पुस्तकसे
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