।। श्रीहरिः ।।

 
आजकी शुभ तिथि–
आश्विन कृष्ण पंचमी, वि.सं.–२०७०, मंगलवार
पंचमीश्राद्ध
अखण्ड साधन
 
 
(गत ब्लॉगसे आगेका)
जैसे यह सिद्ध हो गया कि गृहस्थाश्रममें हम क्यों प्रविष्ट हुए ? त्यागके लिये, वैसे ही अज्ञानसे हमने यह सम्बन्ध क्यों जोड़ा ? त्यागके लिये । इसीलिये इसे अपना माना । त्याग पहले क्यों नहीं हुआ ? त्याग कर नहीं सके । अत: गृहस्थाश्रमको अपनाया । गृहस्थाश्रमको अपनाकर क्या करें ? गृहस्थाश्रमको अपनाकर शास्त्रीय रीतिके अनुसार उसका पालन करें । शास्त्रीय रीति साथमें लाते ही भोगोंमें सीमितपना आ जायगा । देश-काल-वस्तु सब सीमित हो जायगी और सीमित होकर उसके नियम भी हो जायँगे कि ऐसे-ऐसे भोगो । अत: सीमित पदार्थोक साथ सम्बन्ध और नियमपूर्वक भोगनेका सम्बन्ध‒ये दो बातें रहेंगी । इसीको धर्म कहते हैं यानी धर्मके अनुसार गृहस्थाश्रमका पालन करो । फिर क्या होगा ? उच्छृंखल भोग नहीं भोग सकते । इससे एक तो हमारा जीवन नियमित हो जायगा और दूसरी उसमें एक विलक्षण बात और हो जायगी कि हमारा उद्देश्य त्यागका रहेगा । ये दो चीजें साथ होनेसे वैराग्य अवश्य होगा ही‒
धर्म ते बिरति जोग ते ग्याना ।
ग्यान मोच्छप्रद बेद बखाना ॥
 
धर्म ते बिरति‒‘एक स्त्रीके साथ विवाह करो’ तो सीमित हुआ न ? एक गृहस्थमें रहो, एक परिवारमें रहो, एक धरमें रहो, यह तुम्हारा और यह तुम्हारा नहीं । तो यह तुम्हारा भी अपना कैसे है ? जब सारा संसार एक है तो एक घर आपका कैसे ? एक परिवार आपका कैसे ? उतने ही रुपये आपके कैसे ? यह समष्टि पदार्थोंमेंसे नमूना आपको दे दिया गया कि इस नमूनेके साथ न्याययुक्त बर्ताव करते हुए, सबका पालन-पोषण करते हुए आप इनके सुखोंको लें और भोगें । भोगकर देखें इसका नमूना । किसलिये ? त्यागके लिये । तो स्वत: आपके त्याग होगा । धर्मका अनुष्ठान करनेसे वैराग्य होता ही है, होता ही है । भागवतमे लिखा है‒
धर्म: स्वानुष्ठित: पुंसां विष्वक्सेनकथासु यः ।
नोत्पादयेद् यदि रतिं  श्रम एव हि केवलम् ॥
 
धर्मका अच्छी तरह अनुष्ठान किया जाय और भगवान्‌के चरणोंमें यदि प्रीति उत्पन्न नहीं हुई तो धर्मका अनुष्ठान नहीं हुआ, केवल परिश्रम हुआ, परिश्रम‒‘श्रम एव हि केवलम् ।’ यह नियम है कि धर्मपूर्वक विषयोंका सेवन करनेसे वैराग्य होता है । सोचिये, धर्मपूर्वक सेवन करता है किस उद्देश्यसे ? रागको मिटानेके उद्देश्यसे । जब रागकी प्रबलता होती है तब मनुष्य धर्म-कर्म नहीं देखता; फिर तो रागपूर्वक विषय-सेवन करता है । उस विषय-सेवनसे तो विषयका राग बढ़ेगा ही, वैराग्य नहीं होगा । आज बूढ़े हो जानेपर भी वैराग्य नहीं होता । कारण क्या है ? भोग भोगनेके लिये भोग भोगते हैं । रागपूर्वक भोग भोगते हैं । सुख लेनेके लिये भोग भोगते हैं । इससे वैराग्य ब्रह्माजीकी आयु समाप्त हो जायगी तब भी नहीं होगा । और उद्देश्य यदि इनके तत्त्वको जानकर त्यागका है तो नियमपूर्वक विषयोंको भोगनेसे अरुचि हो जाती है । अत: हम देख लें ।
 
    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘एकै साधे सब सधै’ पुस्तकसे