(गत
ब्लॉगसे
आगेका)
ऐसी बात भी
सन्तोंसे सुनी
है कि भावसे लगे
हुए भोगको भगवान्
कभी देख लेते हैं, कभी स्पर्श
कर लेते हैं और
कभी कुछ ग्रहण
भी कर लेते हैं
।
जैसे घुटनोंके
बलपर चलनेवाला
छोटा बालक कोई
वस्तु उठाकर अपने
पिताजीको देता
है तो उसके पिताजी
बहुत प्रसन्न
हो जाते हैं और
हाथ ऊँचा करके
कहते हैं कि बेटा
! तू इतना बड़ा हो
जा अर्थात् मेरेसे
भी बड़ा हो जा । क्या
वह वस्तु अलभ्य
थी ? क्या बालकके
देनेसे पिताजीको
कोई विशेष चीज
मिल गयी ? नहीं । केवल बालकके
देनेके भावसे
ही पिताजी राजी
हो गये । ऐसे
ही भगवान्को
किसी वस्तुकी
कमी नहीं है और
उनमें किसी वस्तुकी
इच्छा भी नहीं
है, फिर भी भक्तके
देनेके भावसे
वे प्रसन्न हो
जाते हैं । परन्तु
जो केवल लोगोंको
दिखानेके लिये, लोगोंको
ठगनेके लिये मन्दिरोंको
सजाते हैं, ठाकुरजी-(भगवान्के
विग्रह-) का शृंगार
करते हैं, उनको बढ़िया-बढ़िया
पदार्थोंका भोग
लगाते हैं तो उसको
भगवान् ग्रहण
नहीं करते; क्योंकि
वह भगवान्का
पूजन नहीं है, प्रत्युत
रुपयोंका, व्यक्तिगत
स्वार्थका ही
पूजन है ।
![]()
प्रश्न‒दुष्टलोग मूर्तियोंको
तोड़ते हैं तो भगवान्
उनको अपना प्रभाव, चमत्कार
क्यों नहीं दिखाते ?
उत्तर‒जिनकी मूर्तिमें
सद्भावना नहीं
है, जिनका मूर्तिमें
भगवत्पूजन करनेवालोंके
साथ द्वेष है और
द्वेषभावसे ही
जो मूर्तिको तोड़ते
हैं, उनके
सामने भगवान्का
प्रभाव, महत्त्व प्रकट
होगा ही क्यों ? कारण कि भगवान्का
महत्त्व तो श्रद्धाभावसे
ही प्रकट होता
है ।
मूर्तिपूजा
करनेवालोंमें
‘मूर्तिमें भगवान्
हैं’‒इस भावकी कमी
होनेके कारण ही
दुष्टलोगोंके
द्वारा मूर्ति
तोड़े जानेपर भगवान्
अपना प्रभाव प्रकट
नहीं करते । परन्तु
जिन भक्तोंका
‘मूर्तिमें भगवान्
हैं’‒ऐसा दृढ़ श्रद्धा-विश्वास
है, वहाँ भगवान्
अपना प्रभाव प्रकट
कर देते हैं । जैसे, गुजरातमें सूरतके
पास एक शिवजीका
मन्दिर है । उसमें
स्थित शिवलिंगमें
छेद-ही-छेद हैं
। इसका कारण यह
था कि जब मुसलमान
उस शिवलिंगको
तोड़नेके लिये
आये, तब
उस शिवलिंगमेंसे
असंख्य बड़े-बड़े
भौंरे प्रकट हो
गये और उन्होंने
मुसलमानोंको
भगा दिया ।
(शेष
आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘मूर्ति-पूजा
और नाम-जपकी महिमा’
पुस्तकसे
|