(गत ब्लॉगसे आगेका)
शास्त्रमें ऐसे अनेक वचन मिलते हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि प्रत्येक वर्ण और आश्रमका मनुष्य तत्त्वज्ञान प्राप्त कर सकता है; जैसे‒
तस्माज्ज्ञानं सर्वतो मार्गितव्यं सर्वत्रस्थं चैतदुक्तं मया ते ।
तत्स्थो ब्रह्मा तस्थिवांश्चापरो यस्तस्मै नित्यं मोक्षमाहुर्नन्द्र ॥
(महा॰ शान्ति॰ ३१८ । ९२)
‘नरेन्द्र ! सब ओरसे ज्ञान प्राप्त करनेका ही प्रयत्न करना चाहिये । यह तो मैं तुमसे बता ही चुका हूँ कि सभी वर्णोंके लोग अपने-अपने आश्रममें रहते हुए ही ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । अतः ब्राह्मण हो अथवा दूसरे किसी वर्णका हो, जो मनुष्य ज्ञानमें स्थित है, उसके लिये मोक्ष नित्य प्राप्त है ।’
स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः ॥
(गीता १८ । ४५)
‘अपने-अपने कर्ममें तत्परतापूर्वक लगा हुआ मनुष्य सम्यक् सिद्धि (परमात्मतत्त्व) को प्राप्त कर लेता है ।’
स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः ॥
(गीता १६ । ४६)
‘उस परमात्माका अपने कर्मके द्वारा पूजन करके मनुष्य सिद्धिको प्राप्त हो जाता है ।’
तात्पर्य है कि जिस पदको ब्राह्मण अपने कर्तव्यका पालन करके प्राप्त करता है, उसी पदको शूद्र भी अपने कर्तव्यका पालन करके प्राप्त कर सकता है । इतना ही नहीं,तीव्र जिज्ञासा होनेपर पापी-से-पापी मनुष्यको भी तत्त्वज्ञान प्राप्त हो सकता है‒
अपि चेदसि पापेध्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः ।
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि ॥
(गीता ४ । ३६)
‘अगर तू सब पापियोंसे भी अधिक पापी है तो भी तू ज्ञानरूपी नौकाके द्वारा निःसन्देह सम्पूर्ण पाप-समुद्रसे अच्छी तरह तर जायगा ।’
भगवद्भक्तिके तो मात्र मनुष्य अधिकारी हैं‒
आनिन्द्योन्यधिक्रियते पारम्पर्यात् सामान्यवत् ।
(शाण्डिल्य॰ ७८)
‘जैसे दया, क्षमा आदि सामान्य धर्मोंके मात्र मनुष्य अधिकारी हैं, ऐसे ही भगवद्भक्तिके नीची-से-नीची योनिसे लेकर ऊँची-से-ऊँची योनितक सब प्राणी अधिकारी हैं ।’
नास्ति तेषु जातिविद्यारूपकुलधनक्रियादि भेदः ।
(नारद॰ ७२)
‘उन भक्तोंमें जाति, विद्या, रूप, कुल, धन, क्रिया आदिका भेद नहीं है ।’
मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः ।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ॥
किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा ।
(गीता ९ । ३२ - ३३)
‘हे पार्थ ! जो भी पापयोनिवाले हों तथा जो भी स्त्रियाँ, वैश्य और शूद्र हों, वे भी सर्वथा मेरे शरण होकर निःसन्देह परमगतिको प्राप्त हो जाते हैं । फिर जो पवित्र आचरणवाले ब्राह्मण और ऋषिस्वरूप क्षत्रिय भगवान्के भक्त हों, वे परमगतिको प्राप्त हो जायँ, इसमें तो कहना ही क्या है !’
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘तत्त्वज्ञान कैसे हो ?’ पुस्तकसे
|