।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमीवि.सं.२०७१शुक्रवार
अहंताका त्याग



जैसे हम सब परमात्माके साक्षात् अंश हैं‒‘ममैवांशः’,‘ईस्वर अंस जीव अबिनासी’, ऐसे ही ये स्थूलसूक्ष्म और कारण-शरीर सब प्रकृतिके अंश हैं । प्रकृतिमें अपनेको बैठा देना और प्रकृतिको अपनेमें बैठा लेना‒यह खास मूल बात है । हम आज शरीरके आरामको सुख क्यों मानते हैं हमने अपनेको शरीरमें बैठा दिया । अपनेको शरीरमें बैठानेसे ‘अहंता’ पैदा होती है और शरीरकोसंसारको अपनेमें बैठानेसे ‘ममता’ पैदा होती है यह खास समझनेकी बात है ।

अपनेको शरीरमें बैठानेसे ‘शरीर मैं हूँ’इस तरह शरीरके साथ अपनी अभिन्नता हो गयीजो कि मानी हुई है;क्योंकि आप चेतन हैं और शरीर जड है । चेतनकी जड शरीरके साथ अभिन्नता हो ही कैसे सकती है शरीर अलग है और आप अलग हैं । शरीर जाननेमें आता है और आप उसको जाननेवाले हैं । परन्तु अपनेको शरीरमें बैठानेसे शरीरकी मुख्यता हो गयी और अपनी बिलकुल गौणता हो गयी । अपनी गौणता होनेसे शरीरमें अहंभाव मुख्य हो गया,जडता मुख्य हो गयी । इसलिये पासमें जड चीजोंके होनेसे हम अपनी उन्नति मानते हैं । जिसके पास धन हैउसको बड़ा आदमी मानते हैं । शरीरकी जातिको ही बड़ा मानते हैं । मकानजमीनरुपया आदि भौतिक चीजोंकी जितनी अधिकता होती हैउतना ही अपनेको बड़ा मानते हैं । कारण कि मूलमें अपनी स्थिति शरीरमें कर ली । शरीरको अपनेसे बड़ा मान लियाअपनेको शरीरके आश्रित मान लिया,शरीरके अधीन मान लिया तो इससे अहंता बढ़ेगी । शरीरका मानआदरसत्कारपूजा होनेसे वह बड़ा राजी होता है;क्योंकि उसने शरीरमें ही अपनी स्थिति मान ली । शरीरके आदरको ही अपना आदरशरीरके सुखको ही अपना सुख,शरीरकी महत्ताको ही अपनी महत्ता मान लेना बड़ी भारी गलती है । कारण कि शरीर तो क्षणभंगुर हैनाशवान् हैजड हैउससे हमारी महत्ता कैसे हुई ?

वस्तुओंको अपनेमें रखनेसे ममता हो जाती है । शरीरधनजमीनआदमी आदि मेरे हैंक्योंकि इनको अपनेमें रख लिया । धन कहीं पड़ा हुआ हैपर उसको अपनेमें रख लिया कि मेरा धन है । बुद्धिविद्या आदिको अपनेमें स्थित कर लिया कि मुझे इतना याद हैइतने शास्त्रोंका ज्ञान है । इतना मेरा कुटुम्ब है तो कुटुम्बमें ममता हो गयी ।

इस प्रकार अपनेको जडतामें स्थापन करनेसे ‘अहंता’और जडताको अपनेमें स्थापन करनेसे ‘ममता’ हो जाती है ।दोनोंके घुलने-मिलनेको ‘अन्योन्याध्यास’ कहते हैं । शरीर सत्य दीखता है‒यह अर्थाध्यास है और शरीर मैं हूँ‒यह ज्ञानाध्यास है । जैसे रस्सीमें साँप दीखता है तो रस्सीमें अर्थाध्यास है और ‘साँप है’ऐसा जो बोध होता है यह ज्ञानाध्यास है । और भी कई अध्यास हैं । हम तो सीधी बात बताते हैं कि अपनेको शरीरमें रख दिया और शरीरको अपनेमें रख लिया‒यह अन्योन्याध्यास है । अपनेको शरीरमें रखनेसे अहंता (मैं-पन) और शरीरको अपनेमें रखनेसे ममता (मेरापन) पैदा हो गयी ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे