।। श्रीहरिः ।।

 
आजकी शुभ तिथि
आषाढ़ शुक्ल पंचमीवि.सं.२०७१बुधवार
कर्म-रहस्य



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
 क्रियमाण कर्म दो तरहके होते हैं‒शुभ और अशुभ । जो कर्म शास्त्रानुसार विधि-विधानसे किये जाते हैंवे शुभ कर्म कहलाते हैं और कामक्रोधलोभआसक्ति आदिको लेकर जो शास्त्र-निषिद्ध कर्म किये जाते हैंवे अशुभ कर्म कहलाते हैं ।

शुभ अथवा अशुभ प्रत्येक क्रियमाण कर्मका एक तो फल-अंश बनता है और एक संस्कार-अंश । ये दोनों भिन्न-भिन्न हैं ।

क्रियमाण कर्मके फल-अंशके दो भेद हैं‒दृष्ट और अदृष्ट । इनमेंसे दृष्टके भी दो भेद होते हैं‒तात्कालिक और कालान्तरिक जैसेभोजन करते हुए जो रस आता हैसुख होता है, प्रसन्नता होती है और तृप्ति होती है‒यह दृष्टका‘तात्कालिक’ फल है और भोजनके परिणाममें आयुबल,आरोग्य आदिका बढ़ना‒यह दृष्टका ‘कालान्तरिक’ फल है । ऐसे ही जिसका अधिक मिर्च खानेका स्वभाव हैवह जब अधिक मिर्चवाले पदार्थ खाता हैतब उसको प्रसन्नता होती हैसुख होता है और मिर्चकी तीक्षाताके कारण मुँहमेंजीभमें जलन होती हैआँखोंसे और नाकसे पानी निकलता हैसिरसे पसीना निकलता है‒यह दृष्टका ‘तात्कालिक’ फल है और कुपथ्यके कारण परिणाममें पेटमें जलन और रोगदुःख आदिका होना‒यह दृष्टका ‘कालान्तरिक’ फल है ।

इसी प्रकार अदृष्टके भी दो भेद होते हैं‒लौकिक और पारलौकिक । जीते-जी ही फल मिल जाय‒इस भावसे यज्ञ,दानतपतीर्थव्रतमन्त्र-जप आदि शुभ कर्मोंको विधि-विधानसे किया जाय और उसका कोई प्रबल प्रतिबन्ध न हो तो यहाँ ही पुत्रधनयशप्रतिष्ठा आदि अनुकूलकी प्राप्ति होना और रोगनिर्धनता आदि प्रतिकूलकी निवृत्ति होना‒यह अदृष्टका ‘लौकिक’ फल है* और मरनेके बाद स्वर्ग आदिकी प्राप्ति हो जाय‒इस भावसे यथार्थ विधि-विधान और श्रद्धा-विश्वासपूर्वक जो यज्ञदानतप आदि शुभ कर्म किये जायँ तो मरनेके बाद स्वर्ग आदि लोकोंकी प्राप्ति होना‒यह अदृष्टका ‘पारलौकिक’ फल है । ऐसे ही डाका डालनेचोरी करनेमनुष्यकी हत्या करने आदि अशुभ कर्मोंका फल यहाँ ही कैदजुर्मानाफाँसी आदि होना‒यह अदृष्टका ‘लौकिक’फल है और पापोंके कारण मरनेके बाद नरकोंमें जाना और पशु-पक्षीकीट-पतंग आदि बनना‒यह अदृष्टका‘पारलौकिक’ फल है ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘कर्म-रहस्य’ पुस्तकसे

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           * यहाँ दृष्टका ‘कालान्तरिक’ फल और अदृष्टका ‘लौकिक’ फल‒दोनों फल एक समान ही दीखते हैंफिर भी दोनोंमें अन्तर है । जो ‘कालान्तरिक’ फल है, वह सीधे मिलता है, प्रारब्ध बनकर नहींपरन्तु जो ‘लौकिक’ फल है, वह प्रारब्ध बनकर ही मिलता है ।