।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
कार्तिक कृष्ण द्वादशी, वि.सं.२०७१, सोमवार
गोवत्स-द्वादशी
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

‘अनिच्छया ही संस्पृष्टो दहत्येव हि पावकः’आग बिना मनके छू जायेंगे तो भी वह जलायेगी ही, ऐसे ही भगवान्‌का नाम किसी तरहसे ही लिया जाय

भाय  कुभाय  अनख  आलसहूँ ।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ॥
                                 (मानस, बालकाण्ड २८ । १)

इसका अर्थ उलटा नहीं लेना चाहिये कि हम कुभावसे ही नाम लें और मन लगावें ही नहीं । बेगारखाते ऐसे ही नाम लेंऐसा नहीं । मन लगानेका उद्योग करो, सावधानी रखो, मनको भगवान्‌में लगाओ, भगवान्‌का चिन्तन करो, पर न हो सके तो घबराना बिलकुल नहीं चाहिये । मेरे कहनेका मतलब यह है कि मन नहीं लग सका तो ऐसा मत मानो कि हमारा नाम-जप निरर्थक चला गया । अभी मन न लगे तो परवाह मत करो; क्योंकि आपकी नीयत जब मन लगानेकी है तो मन लग जायगा । एक तो हम मन लगाते ही नहीं और एक मन लगता नहींइन दोनों अवस्थओंमें बड़ा अन्तर है । ऐसे दिखनेमें तो दोनोंकी एक-सी अवस्था ही दीखती है । कारण कि दोनों अवस्थओंमें ही मन तो नहीं लगा । दोनोंकी यह अवस्था बराबर रही; परन्तु बराबर होनेपर भी बड़ा भारी अन्तर है । जो लगाता ही नहीं, उसका तो उद्योग भी नहीं है । उसका मन लगानेका विचार ही नहीं है । दूसरा व्यक्ति मनको भगवान्‌में लगाना चाहता है, पर लगता नहीं । भगवान्‌ सबके हृदयकी बात देखते हैं

रहति न प्रभु चित चूक किए की ।
करत सुरति  सय  बार  हिए की ॥
                                     (मानस, बालकाण्ड २९ । ५)

भगवान्‌ हृदयकी बात देखते हैं, कि यह मन लगाना चाहता है, पर मन नहीं लगा । तो महाराज ! उसका बड़ा भारी पुण्य होगा । भगवान्‌पर उसका बड़ा असर पड़ेगा । वे सबकी नीयत देखते हैं । अपने तो मन लगानेका प्रयत्न करो, पर न लगे तो उसमें घबराओ मत और नाम लिये जाओ ।
राम !   राम !!   राम !!!
नाम-जपका अनुभव

‘राम’ नामकी वन्दनाका प्रकरण चल रहा है । इसमें ‘राम’ नामकी महिमाका वर्णन भी आया है । इसकी महिमा सुननेसे ‘राम’ नाममें रुचि हो सकती है, पर इसका माहात्म्य तो ‘राम’ नाम जपनेसे ही मिलता है । नाम-महिमा कहने और सुननेसे उसमें रुचि होती है और नाम-जप करनेसे अनुभव होता है, इसलिये बड़ी उपयोगी बात है । इसकी वास्तविकता जपनेसे ही समझमें आयेगी, पूरा पता उससे ही लगेगा । जैसे, भूखे आदमीको भोजनकी बात बतायी जाय तो उसकी रुचि विशेष हो जाती है । पर बिना भूखके भोजनमें उतना रस नहीं आता । जोरसे भूख लगती है, तब पता लगता है कि भोजन कितना बढ़िया है ! वह रुचता है, जँचता भी है और पच भी जाता है । उस भोजनका रस बनता है, उससे शक्ति आती है । ऐसे ही रुचिपूर्वक नामका जप करनेसे ही नामका माहात्म्य समझमें आता है, इसलिये ज्यों-ज्यों अधिक नाम जपते हैं, त्यों-ही-त्यों उसका विशेष लाभ होता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे