(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रवचन- ५
वास्तवमें छत्रपति कौन?
एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ ।
तुलसी रधुबर नाम के
बरन बिराजत दोउ
॥
(मानस, बालकाण्ड,
दोहा २०)
तुलसीदासजी महाराज कहते हैं‒श्रीरामजी महाराजके नामके‒ये दोनों
अक्षर बड़ी शोभा देते हैं । इनमेंसे एक ‘र’ छत्ररूपसे और दूसरा ‘म’ (अनुस्वार) मुकुटमणिरूपसे सब अक्षरोंके ऊपर है । राजाके दो खास
चिह्न होते हैं‒एक छत्र और एक मणि । ‘मणि’ मुकुटके ऊपर रहती है और ‘छत्र’ सिंहासनपर रहता है । राजाका खास श्रृंगार ‘मणि’ होता है । वर्षा और धूपसे बचनेके लिये छाता सब लोग लगाते हैं,
पर राजाका छत्र वर्षा और धूपसे बचनेके लिये नहीं होता । उससे
उनकी शोभा है और ‘छत्र’ के कारण वे छत्रपति कहलाते हैं ।
महाराजा रघुने ‘विश्वजित् याग’ किया । उन्होंने अपने पास तीन चीजें ही रखीं‒एक छत्र और दो चँवर
। और सब कुछ दे दिया, अपने पास कुछ भी नहीं रखा । संसारमात्रपर विजय करना ‘विश्वजित् याग’ कहलाता है । संसारपर जीत कब होती है
? सर्वस्व त्याग करनेसे । संसारमें ऐसा देखा जाता है कि दूसरोंपर दबाव डालकर अपना राज्य
बढ़ा लेनेवाला विजयी कहलाता है, पर वास्तवमें वह विजयी नहीं है । गीताने कहा है‒
इहैव तैर्जितः सर्गो
येषां साम्ये स्थितं मनः
।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥
(५ । १९)
यहाँ जीवित अवस्थामें ही इस संसारपर वे लोग विजयी हो गये,
जिनका मन साम्यावस्थामें स्थित हो गया । मानो हानि-लाभ हो,
सुख-दुःख हो, अनुकूलता
हो या प्रतिकूलता हो, पर जिनके चित्तपर कोई असर नहीं पड़ता, वे
ज्यों-के-त्यों सम, शान्त,
निर्विकार रहते हैं‒ऐसे लोग ही वास्तवमें संसारपर
विजयी होते हैं ।
भाइयो ! बहनो ! आप खयाल करना । इस बातकी तरफ खयाल बहुत कम मनुष्योंका
जाता है । लोग ऐसा समझते हैं कि हम बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे हैं । हमारे व्याख्यानमें
बहुत आदमी आनेसे हम बड़े हो गये । इसमें थोड़ी सोचनेकी बात है वे बड़े हुए कि हम बड़े हुए
! अगर आदमी कम आवें तो हम छोटे हो गये । आदमी ज्यादा आवें या कम आवें,
हममें योग्यता हो या अयोग्यता,
धन आ जाय या चला जाय,
हमारी निन्दा हो जाय या स्तुति हो जाय‒इनका हमारेपर कुछ भी असर
न पड़े, तब हम बड़े हुए । नहीं तो हम बड़े कैसे हुए !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे |