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 (गत ब्लॉगसे आगेका) 
आपत्ति आवे, चाहे
सम्पत्ति आवे, हर समय भगवान्की कृपा समझें । भगवान्की कृपा है
ही, हम मानें तो है, न मानें
तो है, जानें तो है, न जानें
तो है । पर नहीं जानेंगे, नहीं मानेंगे तो दुःख पायेंगे । भीतरसे प्रभु कृपा
करते ही रहते हैं । बच्चा चाहे
रोवे, चाहे हँसे, माँकी कृपा तो बनी ही रहती है,
वह पालन करती ही है । बिना कारण जब छोटा बच्चा ज्यादा हँसता
है तो माँके चिन्ता हो जाती है कि बिना कारण हँसता है तो कुछ-न-कुछ आफत आयेगी । ऐसे
आप संसारकी खुशी ज्यादा लेते हो तो रामजीके विचार आता है कि यह ज्यादा हँसता है तो
कोई आफत आयेगी । यह अपशकुन है । 
राम ! राम !! राम !!! 
प्रवचन- ७ 
नाम  रूप  गति  अकथ
कहानी । 
समुझत सुखद न परति बखानी ॥ 
                             (मानस, बालकाण्ड,
दोहा २१ । ७) 
नाम और रूप (नामी) की जो गति है,
इसका जो वर्णन है, ज्ञान है, इसकी जो विशेष कहानी है,
वह समझनेमें महान् सुख देनेवाली है;
परंतु इसका विवेचन करना बड़ा कठिन है । जैसे नामकी विलक्षणता
है, ऐसे ही रूपकी भी विलक्षणता है । अब दोनोंमें कौन बड़ा है,
कौन छोटा है‒यह कहना कैसे हो सकता है ! भगवान्का नाम याद करो,
चाहे भगवान्के स्वरूपको याद करो,
दोनों विलक्षण हैं । भगवान्के नाम अनन्त हैं,
भगवान्के रूप अनन्त हैं,
भगवान्की महिमा अनन्त है और भगवान्के गुण अनन्त हैं । इनकी
विलक्षणताका वाणी क्या वर्णन कर सकती है ! ‘यतो
वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह ।’, ‘मन समेत जेहि जान न बानी’
मन भी वहाँ कल्पना नहीं कर सकता । बुद्धि भी वहाँ कुण्ठित हो
जाती है तो वर्णन क्या होगा ? 
नामीके दो स्वरूप 
अब आगे नामीके दो स्वरूपोंका वर्णन करते हैं । पहले अन्वय-व्यतिरेकसे
नामकी महिमा और नामको श्रेष्ठ बताया । अब कहते हैं‒ 
अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी । 
उभय  प्रबोधक  चतुर  दुभाषी
॥ 
                             (मानस, बालकाण्ड,
दोहा २१ । ८) 
परमात्मतत्त्वके दो स्वरूप हैं‒एक अगुण स्वरूप है और एक सगुण
स्वरूप है । नाम क्या चीज है ? तो कहते हैं‒‘अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी’
नाम महाराज निर्गुण और सगुण परमात्माके बीचमें सुन्दर साक्षी
हैं और दोनोंका बोध करानेवाले चतुर दुभाषिया हैं । जैसे,
कोई आदमी हिन्दी जानता हो,
पर अंग्रेजी नहीं जानता और दूसरा अंग्रेजी जानता हो,
पर हिन्दी नहीं जानता तो दोनोंके बीचमें एक आदमी ऐसा रख
दिया जाय, जो दोनों भाषाओंको जानता हो, परस्परकी बात एक-दूसरेको समझा दे, वह
दुभाषिया हैं । ‘चतुर दुभाषी’ इसका तात्पर्य हुआ
कि केवल सगुणको निर्गुण और निर्गुणको सगुण बता दे‒यह बात नहीं है; किन्तु नाम महाराजका आश्रय लेनेवाला जो भक्त है, उसको ये नाम महाराज
सगुण और निर्गुणका ज्ञान कर देते हैं, यह विशेषता है । 
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे | 

