।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
वैशाख शुक्ल द्वितीया, वि.सं.२०७२, सोमवार
अहम् हमारा स्वरूप नहीं




 (गत ब्लॉगसे आगेका)

जितने भी परिवर्तन होते हैं, सब उस ज्ञानके अन्तर्गत ही होते हैं । वह ज्ञान कहीं आता-जाता नहीं, प्रत्युत ज्यों- का-त्यों अटल रहता है‒

कूटस्थमचलं ध्रुवम्' (गीता १२ । ३)

नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः’
                                                (गीता २ । २४)

जैसे, प्रकाशके अन्तर्गत आदमी आते-जाते हैं, पर प्रकाश आता-जाता नहीं । सब आ जायँ तो प्रकाश रहता है सब चले जायँ तो प्रकाश रहता है; थोड़े आ जायँ तो प्रकाश रहता है, कोई न आये तो प्रकाश रहता है । प्रकाशमें न कोई बाधा लगती है, न कोई हानि होती है, न कमी होती है, न वृद्धि होती है, न परिवर्तन होता है !  संसारमें कभी अनुकूलता आती है, कभी प्रतिकूलता आती है; कभी सुख होता है, कभी दुःख होता है; कभी ठीक होता है, कभी बेठीक होता है; कभी नफा होता है, कभी नुकसान होता है; कभी संयोग होता है, कभी वियोग होता है; कभी जन्म होता है, कभी मरण होता है; कभी रोग होता है, कभी नीरोगता होती है‒ये सब तो अलग-अलग होते हैं, पर जिसके अन्तर्गत ये सब होते हैं, उस ज्ञानमें क्या फर्क पड़ता है ? वह ज्ञान ज्यों-का-त्यों रहता है । उस ज्ञानका नाम ही आत्मा है और वही परमात्मतत्व है । उस ज्ञानके अन्तर्गत ही अहंता (मैंपन) है । इस प्रकार अहंताको इदंतासे देखें तो जीवन्मुक्ति स्वतःसिद्ध है !

प्रश्न‒अहम्‌को अपनेसे अलग, स्पष्टरूपसे कैसे देखें ?

उत्तर‒यह विचार करें कि हमें अहम्‌का जो भान होता है कि मैं हूँ’, यह एक देशमें होता है या सर्वदेशमें ? प्रत्येक व्यक्तिको अलग-अलग अपने अहम्‌का भान होता है; अतः अहम्‌का भान एक देशमें होता है । मैं, तू, यह और वह‒इन चारोंका एक-एक देशमें भान होता है । चारोंका भान जिस ज्ञानमें होता है वह ज्ञान एक देशमें नहीं है । उस ज्ञानमें स्थित होकर देखें तो अहम् स्पष्टरूपसे अपनेसे अलग एक देशमें (इदंतासे) दीखेगा । अगर स्पष्टरूपसे न दीखे तो विवेककी जागृति नहीं हुई है । विवेककी जागृति न होनेका कारण है‒विवेकका आदर न करना, उसको महत्व न देना । अनादिकालसे हम मैंपन’ को अपना स्वरूप मानकर देखते आये हैं, इसलिये अपनेसे अलग स्पष्टरूपसे मैंपन’ दीखनेमें कठिनता होती है । अगर अपने विवेकको महत्त्व दें तो यह स्पष्टरूपसे अपनेसे अलग दीखने लग जायगा । अहम् स्पष्टरूपसे दीखे अथवा अस्पष्टरूपसे दीखे, है तो दीखनेवाला (दृश्य) ही‒यह निःसन्देह बात है !

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘जिन खोजा तिन पाइया’ पुस्तकसे