।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमीवि.सं.२०७२, सोमवार
हमारा सम्बन्ध संसारसे नहीं है




लोगोंने ऐसा समझ रखा है कि जैसे सांसारिक वस्तुको पानेके लिये उद्योग करना पड़ता है, वैसे भगवान्‌को पानेके लिये भी उद्योग करना पड़ेगा । लोग शंका भी करते हैं कि बिना कोई उद्योग किये मुक्ति कैसे हो जायगी ? तो वास्तवमें यह बात ठीक तरहसे समझी हुई नहीं है, तभी शंका पैदा होती है । आप खयाल करें कि परमात्मा सब देश, काल, वस्तु आदिमें परिपूर्ण है । जैसे सांसारिक वस्तु कर्मोंके द्वारा प्राप्त की जाती है वैसे परमात्मा प्राप्त नहीं किये जाते । सांसारिक वस्तुकी तरह परमात्माको बनाया या कहींसे लाया नहीं जाता । परमात्मा भी मौजूद हैं और हम भी मौजूद हैं ।

देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं ।
कहहु सो कहाँ   जहाँ प्रभु नाहीं ॥
                              (मानस १ । १८५ । ३)

हमारा शरीर तो बनता-बिगड़ता है, संसार भी सब-का-सब अदृश्य हो रहा है, एक क्षण भी टिकता नहीं । परन्तु परमात्मा और उसके अंश हम स्वयं नित्य-निरन्तर ज्यों-के-त्यों रहते हैं । इसलिये न परमात्माको बनाना है, न अपनेको बनाना है । तो फिर हमारे लिये क्या करना रह गया ? यह जो नष्ट हो रहा है न, इस संसारकी ओर जो हमारा खिंचाव है, इसे पकड़ना चाहते हैं, रखना चाहते हैं, बस, यही गलती है । इसे ही मिटाना है । इसी गलतीसे हम दुःख पाते हैं । जो रहनेवाला नहीं है, निरन्तर जा रहा है, उसे अपने साथ रखनेकी इच्छाको ही दूर करना है, और कुछ नहीं करना है । परमात्मा भी मौजूद हैं, हम भी मौजूद हैं और परमात्माके साथ हमारा सम्बन्ध भी मौजूद है । संसारके साथ हमारा सम्बन्ध है नहीं, केवल माना हुआ है । हम रहनेवाले और संसार जानेवाला, इनमें सम्बन्ध है कहाँ ? तो संसारके साथ हमने सम्बन्ध मान लिया, और जिसके साथ हमारा नित्य सम्बन्ध है, उसको भुला दिया, उसे नहीं माना‒यही गलती हुई है । चाहे तो ऐसा मान लें कि परमात्माके साथ हमारा नित्य सम्बन्ध है, और चाहे ऐसा मान लें कि संसारके साथ हमारा सम्बन्ध नहीं है ।

ठीक तरहसे, गहरा उतरकर समझें कि संसारके साथ हमारा सम्बन्ध है ही कहाँ ? शरीर, इन्द्रिय, मन, बुद्धिके साथ हमारा कहाँ सम्बन्ध रहता है ! ये तो बनते-बिगड़ते रहते हैं, इनमें परिवर्तन होता रहता है, पर हम जैसे-के-तैसे रहते हैं । ऐसा ठीक अनुभवमें न आये, तो भी इस बातको पक्की तरह मान लें कि संसारके साथ हमारा सम्बन्ध नहीं है । आप कहते हैं कि संसारका सम्बन्ध छूटता नहीं, पर मैं कहता हूँ कि संसारको पकड़नेकी सामर्थ्य किसीमें है ही नहीं । बात बिलकुल सच्ची है । बालकपनको आपने कब छोड़ा ? पर वह छूट गया । सब कुछ छूट रहा है‒यह सच्ची बात है । सच्ची बातका आप आदर करें । इतना काम कर दें कि संसारका सम्बन्ध छूटता नहीं, यह भावना आप छोड़ दें । संसारका सम्बन्ध बिना किसी अभ्यासके अपने-आप छूट रहा है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘तात्त्विक प्रवचन’ पुस्तकसे