।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया, वि.सं.२०७२, गुरुवार

कामना, जिज्ञासा और लालसा



(गत ब्लॉगसे आगेका)
अगर स्वयं मर जाय तो दूसरी योनिमें कौन जायगा ? स्वर्ग-नरकमें कौन जायगा ? चौरासी लाख योनियाँ कौन भोगेगा ? परन्तु स्वयं कभी मरता नहीं; क्योंकि वह परमात्माका अंश है ।

राम मरे तो मैं मरूँ,  नहिं तो मरे बलाय ।
अविनाशीका बालका, मरे न मारा जाय ॥

जब रामजी नहीं मरते तो फिर हम अकेले क्यों मरें ? हम रामजीके अंश हैं । हमारा विनाश कभी होता ही नहीं । हम कैसे हैं‒यह तो हम नहीं जानते, पर हम अनेक योनियोंमें गये, कभी जलचर बने, कभी नभचर बने, कभी थलचर बने, कभी अण्डज, जरायुज, स्वेदज अथवा उद्भिज्ज बने तो शरीर बदल गये, पर हम नहीं बदले । वे शरीर तो नहीं रहे, पर हम रहे । अतः हमारा स्वरूप हरदम रहनेवाली सत्ता है, जिसका कभी विनाश नहीं होता । यह सत्ता परमात्माका अंश है ।

समुद्रसे जल उठता है तो बादल बनता है । बादल बनकर वह बरसता है । जानकार लोग बता देते हैं कि अमुक जगहसे बादल उठा है तो वह अमुक जगह बरसेगा । वर्षाका जल नालेमें जाता है, नाला नदीमें जाता है । नदी समुद्रमें जाती है । तात्पर्य है कि समुद्रसे उठनेके बाद जल कहीं भी ठहरता नहीं, चलता ही रहता है । अन्तमें जब वह समुद्रमें मिल जाता है, तब उसको शान्ति मिलती है । ऐसे ही परमात्माका अंश जबतक परमात्माको प्राप्त नहीं हो जाता, तबतक इसकी मुसाफिरी चलती रहती है । परमात्मासे मिलनेपर ही इसको शान्ति मिलती है । जैसे, शरीर पृथ्वीका अंश है । जबतक यह पृथ्वीमें नहीं मिल जाता, तबतक यह चलता-फिरता रहता है । अन्तमें मरकर यह मिट्टीमें मिल जाता है । यह पृथ्वीमें ही पैदा होता है, पृथ्वीमें ही रहता है और पृथ्वीमें ही लीन हो जाता है । यह पृथ्वीको छोड़कर कहीं नहीं जा सकता । इसी तरह इस जीवको जबतक परमात्माकी प्राप्ति नहीं होती, तबतक इसकी यात्रा चलती ही रहेगी । यह जन्मता-मरता ही रहेगा, दुःख पाता ही रहेगा‒पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननी जठरे शयनन् ।’ इसको कहीं शान्ति नहीं मिलेगी । इसलिये मनुष्यको अपनी जो असली जिज्ञासा और लालसा है, उसको जाग्रत् करना चाहिये ।

मनुष्यशरीरमें आकर भोग और संग्रहमें लग गये तो लाभ कुछ भी नहीं हुआ, वहीं-के-वहीं रहे । कोल्हूका बैल उम्रभर चलता है, पर वहीं-का-वहीं रहता है । ऐसे ही बार-बार जन्म लेते रहे और मरते रहे तो वहीं-के-वहीं रहे, कुछ फायदा नहीं हुआ । फायदा तभी होगा, जब हमारा भटकना मिट जायगा । इसलिये विचार करना चाहिये कि हम किसके अंश हैं ? हम जिसके अंश हैं, उसको प्राप्त करनेपर ही हमारा भटकना मिटेगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ पुस्तकसे