।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण पंचमी, वि.सं.२०७२, शनिवार
गायकी महत्ता और आवश्यकता



(गत ब्लॉगसे आगेका)

गोरक्षासे सब तरहका लाभ है‒इस बातको धर्मप्राण भारतवर्ष ही समझ सकता है, दूसरे देश नहीं समझ सकते; क्योंकि उनके पास गहरी धार्मिक और पारमार्थिक बातोंको समझनेके लिये वैसी बुद्धि नहीं है और वैसे शास्त्र भी नहीं हैं । जो लोग विदेशी संस्कृति, सभ्यतासे प्रभावित हैं तथा केवल भौतिक चकाचौंधमें फँसे हुए हैं, वे भी गायका महत्व नहीं समझ सकते । वे ऋषि-मुनियोंकी बातोंको तो मानते नहीं और स्वयं जानते नहीं ! ऋषि-मुनियोंने, राजा-महाराजाओंने, धर्मात्माओंने गोरक्षाके लिये बड़े-बड़े कष्ट सहे तो क्या वे सब बेसमझ थे ? क्या समझ अब ही आयी है ?

प्रश्न‒लोगोंमें गोरक्षाकी भावना कम क्यों हो रही है ?

उत्तरगायके कलेजे, मांस, खून आदिसे बहुत-सी अँग्रेजी दवाइयाँ बनती हैं । उन दवाइयोंका सेवन करनेसे गायके मांस, खून आदिका अंश लोगोंके पेटमें चला गया है, जिससे उनकी बुद्धि मलिन हो गयी है और उनकी गायके प्रति श्रद्धा, भावना नहीं रही है ।

लोग पापसे पैसा कमाते हैं और उन्हीं पैसोंका अन्न खाते हैं, फिर उनकी बुद्धि शुद्ध कैसे होगी और बुद्धि शुद्ध हुए बिना सच्ची, हितकर बात अच्छी कैसे लगेगी ?

स्वार्थबुद्धि अधिक होनेसे मनुष्यकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, बुद्धि तामसी हो जाती है, फिर उसको अच्छी बातें भी विपरीत दीखने लगती हैं[*] । आजकल मनुष्योंमें स्वार्थ-भावना बहुत ज्यादा बढ़ गयी है, जिससे उनमें गोरक्षाकी भावना कम हो रही है ।

गायके मांस, चमड़े आदिके व्यापारमें बहुत पैसा आता हुआ दीखता है । मनुष्य लोभके कारण पैसोंकी तरफ तो देखता है, पर गोवंश नष्ट हो रहा है, परिणाममें हमारी क्या दशा होगी, कितने भयंकर नरकोंमें जाना पड़ेगा, कितनी यातना भोगनी पड़ेगी‒इस तरफ वह देखता ही नहीं ! तात्पर्य है कि तात्कालिक लाभको देखनेसे मनुष्य भविष्यपर विचार नहीं कर सकता; क्योंकि लोभके कारण उसकी विचार करनेकी शक्ति कुण्ठित हो जाती है, दब जाती है । लोभके कारण वह अपना वास्तविक हित सोच ही नहीं सकता ।

(शेष आगेके ब्लॉगमें)
        ‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे


         [*] अधर्मं   धर्ममिति   या  मन्यते   तमसावृता ।
    सर्वार्थान्विपरीतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी ॥
                                                          (गीता १८ । ३२)

‘तमोगुणसे घिरी हुई जो बुद्धि अधर्मको धर्म और सम्पूर्ण चीजोंको उलटा ही मानती है, वह तामसी है ।’