।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
शुद्ध आषाढ़ कृष्ण नवमी, वि.सं.२०७२, गुरुवार
भगवत्-तत्त्व


(गत ब्लॉगसे आगेका)
इसी तरह ‘चेतन’ तत्त्व ही नित्य विद्यमान रहनेके कारण ‘सत्‌’ और परम सुखरूप होनेसे ‘आनन्द’ है । तथा ‘आनन्द’ भी एक परिपूर्ण आनन्द है, अतः ‘सत्‌’ तत्त्व उनसे कोई अलग वस्तु नहीं और वह आनन्द केवल ज्ञानस्वरूप होनेसे ‘चेतन’ तत्त्व भी उससे कोई अलग चीज नहीं; क्योंकि परमात्माका ज्ञान होनेसे परम शान्ति तत्काल हो जाती है (गीता ४ । ३९) तथा किसी भी विषयको हम जितना ही समझते हैं, उतना ही आनन्द उसे जाननेके साथ भी उत्पन्न हो जाता है । इससे यह सिद्ध हो जाता है कि जानना और आनन्द‒दो चीजें नहीं एक ही हैं । इसी प्रकार सात्त्विक आनन्द बहुत बढ़ जानेसे उस तत्त्वका ज्ञान भी अपने-आप ही हो जाता है (गीता २ । ६५); क्योंकि वह आनन्द ही ज्ञानस्वरूप है । वहाँ उस ज्ञान-आनन्दकी सत्ता होनेसे वह स्वतःसिद्ध तो है ही । एवं परमात्माकी सत्ताका दृढ़ निश्चय हो जानेपर भय, अशान्ति आदि सब मिटकर साधकको परम आनन्द और परम शान्तिकी प्राप्ति हो जाती है और वह शीघ्र ही परमात्माका यथार्थ तत्त्व जान जाता है । इसीलिये सच्चिदानन्दस्वरूपसे निर्गुण-निराकार परब्रह्म परमात्माका ही वर्णन किया जाता है ।

सगुण-निराकार-तत्त्व

सच्चिदानन्दघन निर्गुण पूर्णब्रह्म परमात्माके किसी एक अंशमें प्रकृति है, उस प्रकृतिसे युक्त होनेसे ही उस पूर्णब्रह्म परमात्माको सगुण चेतन सृष्टिकर्ता ईश्वर कहते हैं, वही आदिपुरुष पुरुषोत्तम, मायाविशिष्ट ईश्वर आदि नामोंसे कहा जाता है । प्रकृतिको लेकर ही उसमें समस्त जीवोंकी स्थिति है । प्रकृति उस परमात्माकी एक अलौकिक दिव्य शक्ति है । उस शक्तिको लेकर ही परमात्मा सम्पूर्ण सृष्टिका सृजन, पालन और संहार किया करते हैं । वे ही मायापति परमात्मा परिपूर्ण सर्वान्तर्यामी सच्चिदानन्दस्वरूप होते हुए भी वस्तुओंमें अस्ति, भाति और प्रियरूपसे प्रतीत होते हैं ।

अग्निकी सत्ता सभी जगह सामान्यरूपसे विद्यमान है, परंतु उसमें दाहिका और प्रकाशिका शक्ति विद्यमान रहते हुए भी समय-समयपर ही प्रकट होती है । काठ, दियासलाई आदि सबमें एक सत्ता ही प्रतीत होती है, चन्द्रमामें सत्ता और प्रकाश‒दोनों प्रत्यक्ष दीखते हैं और सूर्यमें सत्ता, प्रकाश तथा दाह‒तीनों प्रकटरूपसे दीखते हैं । इसी प्रकार भूत, भौतिक, जब, चेतन, स्थावर, जंगम‒सभीमें परमात्माकी सत्ता तो सामान्यरूपसे प्रतीत हो रही है; पर चितिशक्तिका प्रकाश विशेषतासे प्राणियोंमें ही देखा जाता है, जड़ चीजोंमें नहीं एवं आनन्दकी प्रतीति तो ज्ञानी महात्माओंमें ही विशेषरूपसे प्रकट है, अन्य जगह वह लुप्त ही है । तमोगुणके कार्य जड़ पदार्थोंमें भी सत्ता तो प्रकट है, किन्तु तमोगुणकी अधिकता होनेके कारण वहाँ चिदंश और आनन्दांश तिरस्कृत हैं तथा सजीव प्राणियोंमें सत्ता और चेतनता प्रत्यक्ष दीखते हुए भी अज्ञतारूप तमोगुण और चंचलतारूप रजोगुणकी अधिकताके कारण वहाँ आनन्दांश तिरस्कृत है । जहाँ साधनके द्वारा रजोगुण-तमोगुण अंश दूर कर दिये गये हैं, वहाँ महात्मापुरुषोंमें सत्‌, चित्, आनन्दघन परब्रह्म परमात्माका स्वरूप प्रकटरूपसे विद्यमान है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे