।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
अधिक आषाढ़ शुक्ल एकादशी, वि.सं.२०७२, रविवार
पुरुषोत्तमी एकादशी-व्रत (सबका)
सन्त-महिमा


 (गत ब्लॉगसे आगेका)
इसके अलावा हम गरीब हों अथवा धनी होंजिनके मनमें हमारी कोई गरज नहीं दीखती हम धनी हैं तो कुछ ज्यादा आदर करें और गरीब हैं तो निरादर करें, हमसे वे कुछ स्वार्थ सिद्ध करना चाहेंऐसा हमें कभी लगता ही नहीं, कभी भी हम उनसे ज्ञानयोग, भक्तियोगकर्मयोग आदिकी बातें पूछते हैं तो वे उनसे भी आगेकी बातें बता देते हैं हमारी दृष्टिमें सगुण-निर्गुण, साकार-निराकारके तत्त्वको जाननेवाला, उनसे बढ़कर कोई दीखता नहींऐसे महापुरुषोंका संग मिल जाय तो अपना दिल खोलकर रखनेसे बड़ा लाभ होता है


सरल सुभाव मन कुटिलाई
                                               (मानस, उत्तर ४६ )

ऐसे सन्तोंके पास सरल हृदयसे जायँ अपनी विद्वत्ता प्रख्यापित करनेके लिये, चतुर कहलानेके लिये, प्रश्र न करें अपने हृदयकी गुत्थियों सुलझानेके लिये, अपनी उलझन मिटानेके लिये, सरलतासे प्रश्र करें-तो विशेष लाभ ले सकेंगे

      साधनके विषयमें जाननेके लिये प्रश्र करें कि क्या साधन करें ? यहाँतक तो पहुँच गये, इसके बाद क्या साधन करना चाहियेइस प्रकार जानकर आगे बढ़ा जाय तो बहुत लाभकी बात है


         सन्त-महात्माओंको हमारी विशेष गरज रहती है । जैसे, माँको अपने बच्चेकी याद आती है बच्चेको भूख लगते ही माँ स्वयं चलकर बच्चेके पास चली आती हैऐसे ही सन्त-महात्मा सच्चे जिज्ञासुओंके पास खिंचे चले आते हैं  

     इस विषयमें एक कहानी सुनी हैएक गृहस्थ बहुत ऊँचे दर्जेके तत्त्वज्ञ, जीवन्मुक्त महापुरुष थे वे अपने घोड़ेपर चढ़कर किसी गाँव जा रहे थे चलते-चलते घोड़ा एक अन्य रास्तेपर चल पड़ा । उन्होंने उसको कितना ही मोड़ना चाहा, लेकिन वह तो उसी रास्तेपर चलनेके लिये अड़ गया इसपर उन्होंने सोचा कि अच्छी बात है, इसके मनमें जिधर जानेकी हैउधरसे चलना चाहिये अपने थोड़ा चक्कर पड़ेगा, कोई बात नहीं वह घोड़ा जाते-जाते एक घरके सामने रुक
गया समय अधिक हो गया था, अतः वे सन्त घोड़ेसे नीचे उतर पड़े और उस घरके अन्दर गये वहाँ एक सज्जन मिले उन्होंने उन महापुरुषका बड़ा आदर-सत्कार कियाक्योंकि वे उन्हें नामसे जानते थे कि अमुक महापुरुष बड़े अच्छे सन्त हैं वे सज्जन अच्छे साधक थे वे कई बार सोचते थे कि सन्त-महात्माके पास जावें और उनसे साधन-सम्बन्धी रास्ता पूछें आज तो भगवान्ने कृपा कर दी, तो घर बैठे गंगा गयीं उन्होंने उन गृहस्थ-सन्तको भोजनादि कराया सत्संग-सम्बन्धी बातें हुईं जो बातें उन सज्जनने पूछीं, उनका अच्छी प्रकार समाधान उन सन्तने किया


   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगकी विलक्षणता’ पुस्तकसे