।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
शुद्ध आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं.२०७२, बुधवार
सन्त-चरण-रजका तात्पर्य


श्रीभगवान् और उनके भक्तोंकी महिमा अपार है इन दोनोंमें भी हमलोगोंके लिये भगवान्की अपेक्षा सन्त-महात्माओंकी महिमा ही विशेष है, क्योंकि वे हमारे प्रत्यक्षरूपसे काम आते हैं जैसे समुद्र तो बहुत बड़ा हैपरन्तु हमें जल बादलोंसे मिलता है, इसलिये हमारे लिये तो बादल ही बड़े हैं इसी प्रकार हमें तो संत-महात्माओंके द्वारा ही लाभ हुआ है और होता है; इसलिये हमारे लिये संत ही बड़े हैं

विभिन्न सम्प्रदायोंमें बड़े-बड़े महापुरुष हुए हैं; उनके द्वारा अनेक मनुष्योंको शिक्षा मिली है जिससे वे मनुष्य विशेषताको प्राप्त हुए हैं जिन महापुरुषोंसे मानव-जातिको ज्ञान प्राप्त हुआ है, उन महापुरुषोंकी महिमा जितनी गायी जाय, उतनी ही थोड़ी है; ऐसे महापुरुषोंकी चरण-रज्जीका बड़ा महत्त्व है उनकी चरण-रजका माहात्म्य कहनेका तात्पर्य उन महापुरुषोंकी महिमामें है कि वे जहाँ चलते-फिरते हैं, वहाँकी रेणु भी पवित्र हो जाती है जब उनके चरण-स्पर्शमात्रसे रेणु पवित्र हो जाती है, तब वे स्वयं कितने पवित्र होते हैं !

यः सेवते मामगुणं गुणात्परं
हृदा कदा वा यदि वा गुणात्मकम्
सोऽहं स्वपादाञ्चितरेणुभिः स्पृशन्
पुनाति लोकत्रितयं यथा रविः
( रा, उत्तरकाण्ड पंचमसर्ग ६१)

(अर्थ) भगवान् राम कहते हैं कि मेरा सगुण तत्त्व या निर्गुण तत्त्वको जाननेवाला भक्त होवह मेरा ही स्वरूप है ‘सोऽहं’ मैं ही हूँ वह वह संसारमें घूमता-फिरता है तो अपने चरणोंकी रज्जीसे त्रिलोकीको उसी प्रकार पवित्र करता है, जिस प्रकार सूर्य जिस प्रान्तमें जाते हैं उसीमें प्रकाश कर देते हैं

इस श्लोकमें दृष्टान्त ‘सूर्य’ का दिया है जैसे जहाँ सूर्य जाता है, वहाँ प्रकाश हो जाता है, दिन हो जाता है संत-महापुरुष सूर्यसे भी विलक्षण हैं सूर्य तो केवल बाहर प्रकाश करता है; किन्तु सन्त-महापुरुषोंद्वारा तो साधारण मनुष्यको भी विलक्षण ज्ञान-रूपी भीतरका प्रकाश प्राप्त हो जाता है उसके भीतरकी आँखें खुल जाती हैं मैं क्या हूँ कैसा हूँ ? तथा परमात्मा क्या है ? क्या करना चाहिये ? क्या नहीं करना चाहिये ? आदि बातोंका ज्ञान हो जाता है होश आ जाता है जैसे कोई आदमी बेहोश हो और उसे अचानक होश जाय अथवा कोई गाढ़ नींदसे जाग जायऐसे ही गाढ़ अज्ञानमें डूबे प्राणीको महान् ज्ञान हो जाता है इस तरह सन्त-महापुरुषोंकी विशेष कृपा होती है

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगकी विलक्षणता’ पुस्तकसे