।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
श्रावण कृष्ण एकादशी, वि.सं.२०७२, सोमवार
श्रावण सोमवार-व्रत, कामदा एकादशी-व्रत (सबका)
भगवान्से सम्बन्ध


११-१०-८१
गीताप्रेस, गोरखपुर

कामना करें तो भगवान्की करें । क्रोध करें तो भगवान्से करें । ‘क्रोधोऽपि देवस्य वरेण तुल्यः ।’ अगर भगवान् हमारेपर क्रोध भी करेंगे तो वह हमारे लिये ‘वरेण तुल्यः’ वरके तुल्य होगा । नारदभक्तिसूत्रमें आया हैकामक्रोधाभिमानादिकं तस्मिन्नेव करणीयम्’ (६५) मानो हमारे लिये कुछ भी करनेका विषय परमात्मा बन जाय । कामना करें, चाहे क्रोध करें, चाहे लोभ करें, कुछ भी करें तो भगवान्में ही करें । करनेसे क्या होगा‘तस्मात्केनाप्युपायेन मनः कृष्णे निवेशयेत् ।’ किसी प्रकारसे भगवान्में मन लगा दें तो हमारा कल्याण ही है । जैसे बिना इच्छाके भी अग्निके साथ सम्बन्ध करेंगे, स्पर्श करेंगे, भूलसे पैर टिक जाय, हमें पता ही नहीं कि यहाँ अंगार है, तो भी वह तो जलायेगी ही‒‘अनिच्छयापि संस्पृष्टो दहत्येव हि पावकः ।’ ऐसे ही भगवान्का नाम किसी तरहसे लिया जाय, भगवान्के साथ किसी तरहसे सम्बन्ध किया जाय वैरसे भी, प्रेमसे भी, भयसे भी, द्वेषसे भी सम्बन्ध किया जाय, तो वह सम्पूर्ण पापोंका नाश करनेवाला है‒‘अशेषाघहरं विदुः’ यह बात भगवान्के नामके विषयमें बतायी, स्वरूपके विषयमें तो कहना ही क्या है ?

भगवान्के साथ सम्बन्ध करनेसे सम्बन्ध भगवान्के साथ जुड़ जाता है । जैसे संसारके साथ सम्बन्ध जुड़नेसे हमारा जन्म-मरण होता है‒‘कारणं गुणसंगोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु ।’ ‘अस्य गुणङ्गः सत् असत् योनिषु जन्मनः कारणम् ।’ तो हमारे जन्म-मरणका कारण क्या होता है ? ‘गुणङ्गः’ गुणोंका संग । ऐसे ही निर्गुणमें संग हो जायगा तो वह जन्म-मरणमें कारण कैसे होगा ? यही तो परीक्षित्ने प्रश्न किया है, वहाँ रास-पंचाध्यायीमें कि ‘भगवन् ! गोपियाँ तो भगवान् कृष्णको सुन्दर पुरुषके रूपमें ही जानती थीं, ब्रह्मरूपसे नहीं, तो गुणोंमें दृष्टि रखनेवाली गोपियोंका गुणोंका संग कैसे दूर हुआ ?’ उसका शुकदेव मुनिने उत्तर क्या दिया ? वहाँ कहा है कि ‘भगवान्‌से द्वेष करनेवाला चैद्य भी परमात्माको प्राप्त हो गया’‒‘चैद्यः सिद्धिं यथा गतः’ तो ‘किमुताधोक्षजप्रियाः’ जो भगवान्की प्यारी हैं, उनका कल्याण हो जाय, उसमें क्या कहना ! किसी तरहसे ही भगवान्के साथ सम्बन्ध हो जाय, किसी रीतिसे हो जाय । वैरसे, प्रेमसे, सम्बन्धसे, भक्तिसे, द्वेषसे, भयसे । ‘भयात् कंसः, द्वेषाच्चैद्यादयो नृपाः, वृष्णयः सम्बन्धात्, भक्त्या वयम्’नारदजीने कहा है’‒‘किसी तरहसे भगवान्के साथ सम्बन्ध हो जाय तो वह कल्याण करेगा ही । यह बात है । इस बातको भगवान् जानते हैं और भगवान्के प्यारे भक्त जानते हैं । तीसरा आदमी इस तत्त्वको नहीं जानता है ।’

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे