।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
श्रावण शुक्ल सप्तमी, वि.सं.२०७२, शनिवार
गोस्वामी श्रीतुलसीदास-जयन्ती
भगवान्से सम्बन्ध


(गत ब्लॉगसे आगेका)
घरमें चूहे बहुत हो जाते हैं तो तारोंका बना हुआ पिंजरा होता है उसमें रोटीके टुकड़े डालकर अँधेरेमें रख देते हैं । चूहोंको अन्नकी सुगन्धि आती है तो वे देखते हैं कि रोटी उसमें पड़ी है, पर किस तरहसे मिले ? इधर-उधर घूमते हैं । दरवाजा मिलते ही समझते हैं, आहा ! निहाल हो गया मैं तो ! वह भीतरमें भारसे नीचे उतरा और वह पत्ती स्प्रिंगसे वापस बन्द हो जाती है । तो अब मुश्किल हो गयी । अब निकलनेका दरवाजा ढूँढता है, पर मिलता नहीं । बाहरवाले चूहे देखते हैं कि यह मौज कर रहा है अकेला ही । हमारेको भी दरवाजा मिल जाय तो हम भी ऐसी मौज करें । अब दूसरा चला गया तो बाहरके बचे हुए देखते हैं कि इनको रस आ रहा है । आपसमें एक-से-एक लूट रहे हैं तभी तो लड़ते हैं । यों करके फँस जाते हैं । ऐसे ही संसारमें देखते हैं कि धन कैसे मिल जाय, हमारा विवाह कैसे हो जाय, हमारे बच्चे कैसे हो जायँ ? धन भी हो जाय, बच्चे भी हो जायँ । जब ब्याह होनेपर बच्चे होते हैं तो वह कहता हैअब तो हम फँस गये, भाई । पर जिसका नहीं हुआ वह कहता है, मेरे ब्याह ही नहीं हुआ । अब वह यों ही रोता है ।

जिसका ब्याह हो गया, वह मकान खोजता है कलकत्ते जैसे शहरमें । अकेला तो कहीं गद्दीमें सो जाय, पर स्त्री-बच्चोंको अब कहाँ रखे ? मकानके लिये पगड़ी लाओ, मार आफत ! दूसरा देखता है मैं तो अकेला रह गया और यह मौज करता है । बाल-बच्चे हैं इसके तो । कोई ताऊ-चाचा कहते हैं और चीं-पीं करते हैं इसके सामने, तो बड़ा आनन्द आता है कि हमारे इतने बच्चे हैं । बच्चोंके बीचमें बैठा राजी होता है जब कि वह दुःख पा रहा है । अब मुश्किल हो गयी, पालें कैसे इनको ? अब ज्यों छोरा बड़ा हो गया ब्याह करो । छोरी बड़ी हो गयी, उसका ब्याह करो । अब एक नयी आफत और हो गयी ।

एक देश था, उसमें रहनेवाले चौबेजी महाराजने सुना कि किसी देशमें चौबेको छब्बे कहते हैं । तो वहाँ चलो हमारा नाम बढ जायगा । तो वे अपने गाँवसे निकले, दूसरा गाँव आया, उसमें इनको दुब्बे कहने लगे । ‘चौबे होते छब्बे होने चले जब, होय दुब्बे दूय गांठके खोये वहाँ दुब्बे हो गये । ऐसे विचार किया कि यहाँ यह सुख लेंगे, तो जो पहले सुख था, वह भी गया । स्त्री-बच्चे नहीं थे तब बड़ी आजादी थी, स्वतन्त्र थे, अब क्या करें ? फँस गये । अब निकलना मुश्किल हो गया मुश्किल, मुश्किल कुछ नहीं है, स्वयं छोड़े तो कुछ मुश्किल नहीं है । चूहेके लिये तो तारोंका पिंजरा दूजेका बनाया हुआ है, यह पिंजरा खुदका बनाया हुआ है । दूजेका बनाया हुआ तोड़ना मुश्किल है । यह तो अपना बनाया हुआ है, इस वास्ते चट तोड़ा, चट चल दिया । पर तोड़ नहीं सकते ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे