।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि


आश्विन कृष्ण अष्टमी, वि.सं.२०७२, सोमवार
अष्टमी-श्राद्ध, जीवत्पुत्रिका-व्रत
कारागार‒एक शिक्षालय
(नागपुरके कारागारमें किया गया एक प्रवचन)



(गत ब्लॉगसे आगेका)

सुख भोगनेसे तो पुण्योंका नाश होता है और अपना स्वभाव बिगड़ता है, इससे पापोंके बीज बोये जाते हैं । परन्तु दुःखमें तो लाभ-ही-लाभ होता है, नुकसान होता ही नहीं । जितना दुःख, कष्ट आता है, वह पुराने पापोंका नाश करता है और आगेके लिये सावधान करता है ।

राजा प्रजाका माता-पिता होता है । वह प्रजाका हित चाहता है । अतः आपके हितके लिये ही आपको यहाँ भरती किया है, जिससे आपके जीवनमें कोई दोष रहे ही नहीं, आप पवित्र बन जायँ । आप ऐसा न समझें कि कैदखानेमें आकर हम पराधीन हो गये । इसको शिक्षालय समझें । यहाँ क्रियात्मक शिक्षा दी जाती है । यह अपवित्र नहीं है । यहाँ भगवान् श्रीकृष्णने जन्म लिया था । इसलिये सभ्य लोग कारागारको ‘कृष्ण-जन्म-स्थान’ कहते हैं । कारागारमें अवतार लेकर भी भगवान् श्रीकृष्ण कितने बड़े हो गये ? उनकी शिक्षा ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ का विदेशीलोग भी आदर करते हैं । कोई भी आदमी अगर विद्वान् होगा तो वह गीताका आदर जरूर करेगा ।

यहाँ आपकी बहुत बड़ी उन्नति हो सकती है । यहाँ रहकर अच्छे काम करें, अच्छा बर्ताव करें । सबके साथ सेवाका बर्ताव करें, आदरका बर्ताव करें, उनको सुख पहुँचानेका बर्ताव करें । यहाँ आप तरह-तरहके काम-धन्धे भी सीखते होंगे । उससे भी बहुत बड़ा फायदा होता है । एक विद्या आ जायगी, उस विद्यासे आप आगे कमाकर खा सकते हैं । मैं यहाँके कायदेसे परिचित नहीं हूँ । मेरा और कई जगह जानेका काम पड़ा है । बीकानेरके कैदखानेमें देखा था कि वहाँ बड़ी अच्छी-अच्छी दरियाँ, गलीचे आदि बनते हैं । ऐसी-ऐसी सुन्दर चीजें बनती हैं, जो विदेशोंमें भी जाती हैं । जब गंगासिंहजी महाराज बीकानेरके राजा थे, तब वे एक बार इंगलैण्ड गये । वहाँ उन्होंने बहुत कीमत देकर एक गलीचा खरीदा । वहाँसे वापस आकर उन्होंने बीकानेर-जेलमें गलीचा-बुनाईपर जो अफसर था, उसको बुलाकर कहा कि ‘देखो, ऐसा गलीचा अपने यहाँ भी बुनवाओ । यह मैं इंगलैण्डसे लाया हूँ ।’ गलीचा देखकर उसने बताया कि ‘अन्नदाता ! यह तो अपनी जेलका ही बना हुआ है, वहाँ जानेसे बड़ा कीमती हो गया । यह देखिये, अपनी जेलसे बने हुएका चिह्न ।’

यहाँ काम करनेमें तो आपको ऐसा लगता है कि हम परवश होकर करते हैं; पर उसको भी अगर आप सीख लेंगे तो वह विद्या आपके हाथ लग जायगी । उस विद्यासे आप जहाँ रहें, वहाँ काम कर सकते हैं । बड़े-बड़े धनी व्यापारियोंके यहाँपर आप इकट्ठे होकर कहो कि हमें ऐसा-ऐसा काम आता है तो उनकी सहायतासे आप देशकी बड़ी उन्नति कर सकते हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘वास्तविक सुख’ पुस्तकसे