।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक शुक्ल एकादशी, वि.सं.२०७२, रविवार
प्रबोधिनी एकादशी-व्रत (सबका), श्रीतुलसी-विवाह
भगवान्विष्णु



परब्रह्म परमात्मा एक ही हैं । उनसे बढ़कर दूसरा कोई व्यापक, निर्विकार, सदा रहनेवाला तत्त्व नहीं है । गीतामें उस तत्त्वका ज्ञेयनामसे वर्णन किया गया है (१३ । १२-१७) जिसको जान सकते हैं, जो जाननेयोग्य है तथा जिसको अवश्य जानना चाहिये, उसकोज्ञेयकहते हैं । उसको जान लेनेपर मनुष्य ज्ञातज्ञातव्य होकर सदाके लिये जन्म-मरणसे रहित हो जाता है । उस अनादि और परब्रह्म परमात्मतत्त्वको सत् भी नहीं कह सकते और असत् भी नहीं कह सकते अर्थात् उसमें सत्-असत् शब्दोंकी पहुँच नहीं होती; क्योंकि वह शब्दातीत है ।

जैसे स्याहीमें सब जगह सब तरहकी लिपियाँ विद्यमान रहती हैं और सोनेमें सब जगह सब तरहके गहने, मूर्तियाँ और उनके अवयव विद्यमान रहते हैं, ऐसे ही उस परमात्मतत्त्वमें सब जगह अनन्त वस्तुएँ, व्यक्ति और उनके अवयव विद्यमान रहते हैं । इसलिये वे सम्पूर्ण ब्रह्माण्डोंको अपने एक अंशसे व्याप्त करके स्थित हैं‘विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्’ (गीता १० । ४२)

वे परमात्मा सम्पूर्ण इन्द्रियोंसे रहित होनेपर भी इन्द्रियोंके विषयोंको ग्रहण करते हैं, आसक्तिरहित होनेपर भी सम्पूर्ण संसारका भरण-पोषण करते हैं और निर्गुण होनेपर भी गुणोंके भोक्ता बनते हैं । वे सम्पूर्ण प्राणियोंके बाहर-भीतर परिपूर्ण हैं और उन प्राणियोंके रूपमें भी वे ही हैं‘वासुदेवः सर्वम्’ (गीता ७ । १९) । देश, काल और वस्तुतीनों ही दृष्टियोंसे वे परमात्मा दूर-से-दूर भी हैं और नजदीक-से-नजदीक भी हैं ।[*] अत्यन्त सूक्ष्म होनेसे वे इन्द्रियों और अन्तःकरणकी पकड़में नहीं आते ।

वे परमात्मा स्वयं विभाग-रहित होनेपर भी अलग-अलग प्राणियोंमें विभक्तकी तरह प्रतीत होते हैं । वे सम्पूर्ण जगत्को प्रकाशित करते हैं, पर उनको कोई प्रकाशित नहीं कर सकता । वे ज्ञानस्वरूप, प्रकाशस्वरूप परमात्मा सबके हृदयमें नित्य-निरन्तर विद्यमान हैं । ऐसे वे जाननेयोग्य एक परमात्मा ही रजोगुणकी प्रधानता स्वीकार करके ब्रह्मारूपसे सबको उत्पन्न करते हैं, सत्त्वगुणकी प्रधानता स्वीकार करके विष्णुरूपसे सबका भरण-पोषण करते हैं और तमोगुणकी प्रधानता स्वीकार करके शिवरूपसे सबका संहार करते हैं‘भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च’ (गीता १३ । १६)[†] । ऐसा करनेपर भी वे सम्पूर्ण गुणोंसे रहित और निर्लिप्त रहते हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘कल्याण-पथ’ पुस्तकसे


[*] दूर-से-दूर देशमें भी वे परमात्मा हैं और नजदीक-से-नजदीक देशमें भी वे परमात्मा हैं । सबसे पहले भी वे परमात्मा थे, सबके बाद भी वे परमात्मा रहेंगे और अब भी वे परमात्मा हैं । सम्पूर्ण वस्तुओंके पहले भी वे परमात्मा थे, सम्पूर्ण वस्तुओंके अन्तमें भी वे परमात्मा रहेंगे और अब वस्तुओंके रूपमें भी वे परमात्मा हैं ।

           [†] सृष्टिस्थित्यन्तकरणाद् ब्रह्माविष्णुशिवात्मकः ।
                  स संज्ञा   याति   भगवानेक   एव  जनार्दनः ॥
                                               (पद्मपुराण, सृष्टि २ । ११४)

एक ही भगवान् जनार्दन सृष्टि, पालन और संहार करनेके कारण ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव नाम धारण करते हैं ।