।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष कृष्ण पंचमी, वि.सं.२०७२, बुधवार
सच्चा गुरु कौन ?


(गत ब्लॉगसे आगेका)

          आजकलके जमानेमें तो गुरुका पूजन, ध्यान आदि करनेमें विशेष सावधान रहना चाहिये; क्योंकि इसमें धोखा होनेकी बहुत सम्भावना है । अपनी पूजा करानेवाले, अपने नामका जप एवं शरीरका ध्यान करानेवाले, अपनी जूठन, चरणरज, चरणामृत देनेवालेसे जहाँतक बने, दूर रहना चाहिये, बचना चाहिये । कारण कि इसमें ठगे जानेकी सम्भावना है, जैसे‒कपटमुनिसे प्रतापभानु, साधुवेशधारी रावणसे सीताजी और कालनेमिसे हनुमान्‌जी ठगे गये थे !

          जो साधक हैं, पारमार्थिक मार्गपर चलनेवाले हैं, उनको अपनी पूजा आदि नहीं करवानी चाहिये; क्योंकि इससे तपोबल क्षीण होता है और पारमार्थिक उन्नतिमें बाधा लगती है । अतः साधकोंको इन बातोंसे बचना चाहिये, सावधान रहना चाहिये । साधुओंको तो इन बातोंसे विशेष सावधान रहना चाहिये; क्योंकि जो अपनी पूजा आदि करवाता है, उसका तप, साधन पुष्ट नहीं होता; जैसे अधिक दूध देनेवाली गाय पुष्ट नहीं होती‒‘दुग्धा गौरिव सीदति ।’

प्रश्न‒कई साधु अपनेको भगवान् कहा करते हैं, क्या यह उचित है ?

उत्तर‒अपनेको भगवान् कहनेवाले प्रायः पाखण्डी ही होते हैं । वे केवल अपनी पूजा, प्रतिष्ठा, लाभके लिये; अपने स्वार्थकी सिद्धिके लिये ही ऐसा स्वाँग बनाते हैं । भगवान्का यह स्वभाव नहीं है कि वे अपनेको भगवान् नामसे प्रसिद्ध करें; अतः जो अपनेको भगवान् कहते हैं, वे भगवान् नहीं हो सकते ।

          तीन रामायण है‒वाल्मीकिरामायण, अध्यात्म-रामायण और रामचरितमानस । इनमेंसे वाल्मीकिरामायणमें कर्मकी प्रधानता, अध्यात्मरामायणमें ज्ञानकी प्रधानता और रामचरित-मानसमें भक्तिकी प्रधानता है । इन तीनों ही रामायणमें रामने अपनेको भगवान् नहीं कहा । हनुमान्जीने पूछा‒

की तुम्ह अखिल भुवन पति लीन्ह मनुज अवतार ॥
                                                      (मानस ४ । १)

तो रामजीने अपना परिचय दिया‒

कोसलेस    दसरथ    के   जाए ।
हम पितु बचन मानि बन आए ॥
                                        (मानस ४ । २ । १)

भगवान् श्रीकृष्णने क्षत्रियोंके समुदायमें अपनेको सारथिरूपसे स्वीकार किया, सूतपनको स्वीकार किया । अतः जो असली भगवान् होते हैं, वे यह अभिमान नहीं करते कि ‘मैं भगवान् हूँ’ और जो कहते हैं कि ‘मैं भगवान् हूँ’, वे भगवान् नहीं होते । अगर वे भगवान् होते तो अपनेको भगवान् क्यों कहते ? भागवतमें मिथ्यावासुदेवका वर्णन आता है । वह कहता था कि ‘असली वासुदेव मैं ही हूँ, कृष्ण तो नकली वासुदेव हैं ।’ भगवान् कृष्णने युद्धमें उसको मार दिया, पर ‘मैं ही असली वासुदेव हूँ’‒ऐसा नहीं कहा । तात्पर्य है कि जो अपनेको भगवान् कहते हैं, वे मिथ्यावासुदेव हैं, पाखण्डी हैं

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सच्चा गुरु कौन ?’ पुस्तकसे