।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष शुक्ल नवमी, वि.सं.२०७२, सोमवार
कृष्णं वन्दे जगदगुरुम्



(गत ब्लॉगसे आगेका)
बालकका पालन माँ ही कर सकती है, पर माँको बालककी ज्यादा गरज होती है, बालकको माँकी गरज नहीं होती । इतनी देर हो गयी, बालकने दूध नहीं पिया, क्या बात है ?‒ यह चिन्ता माँको रहती है । ऐसे ही जब मनुष्य असली शिष्य बन जाता है, उसमें अपने उद्धारकी लालसा लग जाती है, तब गुरु अपने-आप उसे ढूँढ़ लेता है । जो असली गुरु होते हैं, वे दूसरेको चेला नहीं बनाते, प्रत्युत गुरु ही बनाते हैं ।[*] जिसको वे चेला बनाते हैं, वह दुनियाका गुरु बन जाता है । वहाँ ऐसी टकसाल है, जहाँसे गुरु-ही-गुरु निकलते हैं । दूसरेको अपना चेला बनाना तो पशुका काम है । कुत्ता दूसरे कुत्तेको काटता हैं और जब वह कुत्ता नीचे गिर जाता है तो यह ऊपर हो जाता है और राजी हो जा जाता है । दूसरेको चेला बनाकर, अपना मातहत (अधीन) बनाकर राजी होना क्या गुरुका लक्षण है ? भगवान्‌के दरबारमें अंधेर नहीं है । अगर आप तैयार हो जाओ तो अच्छे-अच्छे गुरु आपकी गरज करेंगे । बच्‍चेके बिना माँ वर्षोंतक रह सकती है और रहती आयी है, पर बच्‍चा माँके बिना नहीं रह सकता । फिर भी बच्‍चेमें माँकी जितनी गरज होती है, उससे ज्यादा माँमें बच्‍चेकी गरज होती है । परन्तु बच्‍चा माँके हृदयको समझ ही नहीं सकता । ऐसे ही गुरु चेलेके बिना रह सकता है, पर चेला गुरुके बिना नहीं रह सकता । चेलेके भीतर अपने उद्धारकी जितनी लगन होती है, उससे ज्यादा गुरुमें चेलेके उद्धारकी लगन होती है । परन्तु चेला गुरुके हृदयको समझ ही नहीं सकता ।

बछड़ेको देखकर गायका हृदय उमड़ता है । बछड़ेका तो एक मुँह होता है, पर गायका दूध चार थनोंसे टपकता है । ऐसे ही आपमें अपना कल्याण करनेकी लगन लगेगी तो गुरुका हृदय उमड़ पड़ेगा । संत-महात्माओंके मनमें जीवका उद्धार करनेकी जितनी लगन होती है, उतनी खुद जीवमें अपना उद्धार करनेकी नहीं होती ।

आपको गुरुको ढूँढ़नेकी क्या जरूरत है ? आप असली चेला बन जाओ, आपके भीतर अपने उद्धारकी लालसा लग जाय, तो गुरु खोजते हुए आ जायँगे आपके पासमें । कभी-कभी स्वप्नमें भी गुरु मिल जाते हैं और मन्त्र दे देते हैं । चरणदासजी महाराजको शुकदेवजीने स्वप्नमें आकर दीक्षा दी । शुकदेवजी महाराज हजारों वर्ष पहले हुए और चरणदासजी महाराज अभी हुए, पर शुकदेवजी महाराज गुरु हो गये और चरणदासजी महाराज चेला हो गये । गुरुजनोंके हृदयमें तो मात्र दुनियाके उद्धारकी लालसा होती है । अतः आपको उन्हें ढूँढ़नेकी जरूरत नहीं है ।

भाई कहते हैं कि तुम घोषणा कर दो, सबको कह दो, तो माताओ ! भाइयो ! आप सभीसे मेरा कहना है कि अगर गुरु बनाना हो तो कृष्णको गुरु मान लो । वे सम्पूर्ण जगत्के गुरु हैं‘कृष्ण वन्दे जगद्‌गुरुम् ।’ आप जगत्से बाहर नहीं हो । गुरुजीका मन्त्र है‘गीता’ । गीताजीका पाठ करो, मनन करो । गीताजीको याद करो । उसके अनुसार अपना जीवन बनाओ । उद्धार हो जायगा ! जितनी अधिक लगन होगी, उतनी जल्दी उद्धार होगा । जितनी ढिलाई होगी, उतनी देरी लगेगी । उद्धार होगा ही । लाभ ही होगा, नुकसान नहीं होगा । अगर किसी ‘ऐरे गैरे नत्थू खैरे’ को गुरु बनाओगे तो वह क्या निहाल करेगा ! इसलिये आप निःसंकोच होकर भगवान्के चरणोंके आश्रित हो जाओ । डरो मत, निधड़क रहो । जो बनावटी गुरु होते हैं, उनके एजेंट ही कहा करते हैं कि ‘तुम इनके चेले बन जाओ ।’ रावण भिक्षा लेने गया तो उसने सीताजीसे कहा कि जो कार (लकीर) है, उसके भीतर हम नहीं आते‘नहीं आते कारके भीतर, निराकार जयते हरिहर हर हम निराकारको जपते हैं, आकारके भीतर नहीं आते, लकीरसे बाहर आकर भिक्षा दो । सीताजी बाहर आयीं तो उनको उठाकर चल दिया ! ये हैं गुरुजी महाराज ! इनसे सावधान रहना । आजसे ही याद कर लो कि ‘कृष्ण वन्दे जगद्गुरुम् ।’

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘सच्चा गुरु कौन ?’ पुस्तकसे


[*] पारसमें  अरु  संतमें  बहुत  अंतरौ  जान ।
  वह लोहा कंचन करै वह करै आपु समान ॥