।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष कृष्ण अष्टमी, वि.सं.२०७२, शनिवार

स्वाधीनताका रहस्य




मनुष्य-शरीर परमात्माकी प्राप्तिके लिये ही मिला है । इसके सामने जो भी परिस्थिति आती है, वह सब-की-सब साधन-सामग्री है । उसीके सदुपयोगसे परमात्माकी प्राप्ति हो जाती है । मनुष्यके मनमें रहती है कि परिस्थिति बदल जाय, शरीर ठीक नहीं है तो ठीक हो जाय, धन नहीं है तो धनवान् हो जायँ; ऐसी परिस्थिति हो जाय तो फिर हम भजन करें । वास्तवमें परिस्थितिके बदलनेकी बिलकुल आवश्यकता नहीं है । जैसी स्थितिमें स्थित हैं, उसी स्थितिमें परमात्माकी प्राप्ति हो सकती है ! सांसारिक वस्तुओंकी प्राप्तिमें तो अलग-अलग स्थिति, योग्यता, परिस्थिति आदिकी आवश्यकता होती है ! पर परमात्माकी प्राप्तिमें आपकी जो योग्यता है, जो स्थिति है, जो परिस्थिति है, उसीमें परमात्माकी प्राप्ति हो सकती है । कितनी विलक्षण बात है ! केवल आपकी इच्छा चाहिये कि हमें एकमात्र परमात्माकी प्राप्ति करनी है । यह इच्छा प्रबल होनी चाहिये अर्थात् इस इच्छाके सिवाय दूसरी सम्पूर्ण इच्छाएँ नष्ट हो जायँ । भगवान्‌के लिये यह कहा गया है‒‘न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्यः । ' (गीता ११ । ४३) ‘आपके समान भी कोई नहीं है, फिर आपसे श्रेष्ठ कैसे होगा ? अतः वे परमात्मा सर्वोपरि हैं, इसलिये उनकी इच्छा भी सर्वोपरि होनी चाहिये ।

परमात्मप्राप्तिकी एक ही उत्कट अभिलाषा हो । मैं जीता रहूँ, नीरोग हो जाऊँ, धनवान् हो जाऊँ, विद्वान् हो जाऊँ, योग्य बन जाऊँ; लोग मेरेको अच्छा मानें, मेरी महिमा गायें, मेरा आदर करें आदि कोई भी इच्छा न हो । कुछ भी योग्यता, विद्या आदि न होनेपर भी परमात्माकी प्राप्ति हो सकती है‒यह बात मेरेको बिलकुल स्पष्ट दीखती है । जितनी भिन्नता है, वह सांसारिक दृष्टिसे है । कोई योग्य है, कोई अयोग्य है; कोई विद्वान् है, कोई मूर्ख है; कोई धनवान् है, कोई निर्धन है; कोई होशियार है, कोई भोलाभाला है‒इस तरह संसारकी दृष्टिसे तो भिन्नता रहती है, परन्तु जब संसारका त्याग और परमात्माको प्राप्त करना हो, तब यह भिन्नता नहीं रहती । संसारकी कैसी ही अवस्था, परिस्थिति क्यों न हो, उसका मनसे त्याग करना है, उससे ऊँचा उठना है, उससे अपना कुछ भी सम्बन्ध नहीं रखना है । जिसका त्याग ही करना है, वह चाहे बढ़िया हो, चाहे घटिया हो, उससे हमारा क्या सम्बन्ध ?

कोई विद्वान् है, कोई मूर्ख है; कोई धनवान् है, कोई निर्धन है, कोई योग्य है कोई अयोग्य है‒ये अवस्थाएँ संसारकी हैं । संसारसे विमुख होना है तो विद्वत्ता, धनवत्ता आदि भी छोड़नी है और मूर्खता, निर्धनता आदि भी छोड़नी है । कारण कि परमात्माकी प्राप्ति संसारके द्वारा नहीं होती, प्रत्युत संसारके त्यागसे होती है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘अच्छे बनो’ पुस्तकसे