(गत ब्लॉगसे आगेका)
अभिन्नता दो होते हुए भी हो सकती है;
जैसे बालककी माँसे,
सेवककी स्वामीसे, पत्नीकी पतिसे अथवा मित्रकी मित्रसे अभिन्नता होती है । इसलिये
भक्तिमें आरम्भसे ही भक्तकी भगवान्से अभिन्नता हो जाती है‒‘साह ही को गोतु गोतु होत है गुलाम को’ (कवितावली, उत्तर॰ १०७) । कारण कि भक्त अपना अलग अस्तित्व नहीं मानता । उसमें यह भाव रहता है कि भगवान्
ही हैं, मैं हूँ ही नहीं ।
प्रेममें माधुर्य है । अतः ‘प्रभु मेरे हैं’ ऐसे अपनापन होनेसे भक्त भगवान्का ऐश्वर्य (प्रभाव) भूल जाता
है । जैसे, महारानीका बालक उसको ‘माँ मेरी है’ ऐसे मानता है तो उसका प्रभाव भूल जाता है कि यह महारानी है ।
एक बाबाजीने गोपियोंसे कहा कि कृष्ण बड़े ऐश्वर्यशाली हैं,
उनके पास ऐश्वर्यका बड़ा खजाना है,
तो गोपियाँ बोलीं कि महाराज ! उस खजानेकी चाबी तो हमारे पास
है ! कन्हैयाके पास क्या है ? उसके पास तो कुछ भी नहीं है ! तात्पर्य है कि माधुर्यमें ऐश्वर्यकी विस्मृति हो जाती है । संसारमें तो
ऐश्वर्यका आदर है । जिस समय भगवान्में माधुर्य-शक्ति प्रकट रहती है,
उस समय ऐश्वर्य-शक्ति दूर भाग जाती है,
पासमें नहीं आती । वास्तवमें भक्त भगवान्के ऐश्वर्यको देखता
ही नहीं । कारण कि भगवान्को भगवान् समझकर प्रेम करना भगवान्के
साथ प्रेम नहीं है, प्रत्युत भगवत्ता (ऐश्वर्य) के साथ प्रेम है । जैसे, धनको देखकर धनवान्के साथ स्नेह करना वास्तवमें धनवत्ताके साथ
स्नेह करना है ।
प्रेमकी जागृतिमें भगवान्की कृपा ही खास कारण है
। प्रेमकी वृद्धिके लिये विरह और मिलन भी भगवान्की कृपासे ही प्राप्त होते हैं । आदरपूर्वक भगवल्लीलाका श्रवण,
वर्णन, चिन्तन तथा भगवन्नामका कीर्तन आदि साधनोंके बलसे प्रेमकी प्राप्ति
नहीं होती, प्रत्युत समयका सदुपयोग होता है,
जिसको वैष्णवाचार्योंने ‘कालक्षेप’ कहा है । भगवान्की कृपा प्राप्त होती
है उनकी शरण होनेपर । शरण होनेमें संसारके आश्रयका त्याग मुख्य है ।
संसारसे अलग होनेपर संसारका ज्ञान होता है और भगवान्से अभिन्न
होनेपर भगवान्का ज्ञान होता है । कारण कि जीव संसारसे अलग है और भगवान्से अभिन्न
है‒यह वास्तविक, यथार्थ बात है । परन्तु शरीर-संसारसे एकता माननेसे संसारका ज्ञान
नहीं होता और संसारका ज्ञान न होनेसे ही संसारकी तरफ खिंचाव होता है । इसी तरह भगवान्से
भिन्नता माननेसे भगवान्का ज्ञान नहीं होता और भगवान्का ज्ञान न होनेसे ही भगवान्की
तरफ खिंचाव नहीं होता । संसार अपना नहीं है‒इस तरह संसारका
ज्ञान होनेसे संसारसे सम्बन्ध-विच्छेद हो जाता है । भगवान् अपने हैं‒इस तरह भगवान्का
ज्ञान होनेसे भगवान्के साथ अभिन्नता होकर प्रेम हो जाता है ।
नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
‒‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ पुस्तकसे
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