।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन कृष्ण तृतीया, वि.सं.२०७२, गुरुवार
साधकोंके प्रति-१




अन्य न हो, उसको अनन्य कहते हैं । एक तरफ तो संसार है और एक तरफ भगवान् है । संसार और भगवान्‌के बीचमें जीवात्मा है । संसारमें रुचि न रहकर केवल भगवान्‌में रुचि होनेका नाम अनन्य भक्ति है । संसारमें भी रुचि हो और भगवान्‌में भी रुचि हो, यह अन्य भक्ति है, अनन्य भक्ति नहीं । संसारको भी चाहता है और भगवान्‌को भी चाहता है तो‒दुविधामें दोनों गये माया मिली न राम; क्योंकि संसार तो टिकेगा नहीं अर्थात् स्थायीरूपसे रहेगा नहीं और भगवान्‌को लेते नहीं । जिसको लेते है, वह तो रहता नहीं और जो रहता है, उसको लेते नहीं‒यह दशा है हमारी ! इसलिये जो रहे उसीको ले और जो न रहे उसको न ले‒यह अनन्य भक्ति है ।

मनुष्य-जन्मका ध्येय महान् आनन्दको प्राप्त कर लेना और दुःखोंसे सर्वथा रहित हो जाना है । दुःख तो वहाँ कोई पहुँचे नहीं और आनन्द, शान्ति, प्रसन्नता, खुशी आदि कोई बाकी रहे नहीं । इसके लिये गीताके छठे अध्यायका बाईसवाँ श्लोक बहुत कामका है । इसमें दो बातें बतायी गयी हैं‒‘यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः ।’ जिस लाभकी प्राप्ति होनेके बाद उससे और कोई अधिक लाभ होगा, यह बात उसके माननेमें भी नहीं आती, और ‘यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते ।’ वह जिसमें स्थित है, उससे कभी विचलित नहीं होता । बड़े भारी दुःखसे, बड़े भारी सन्तापसे, बड़ी भारी प्रतिकूल परिस्थितिसे वह विचलित नहीं होता । इतना ही नहीं, उसके शरीरके टुकड़े-टुकड़े कर दिये जायँ तो भी वह विचलित नहीं होता, ज्यों-का-त्यों ही मौजूद रहता है । ऐसी स्थिति प्राप्त कर लेना ही मनुष्य-जन्मका ध्येय है और इसी तत्त्वकी प्राप्तिके लिये मनुष्य-शरीर मिला है । संसारका सुख-दुःख तो सम्पूर्ण प्राणी भोगते ही है । कुत्ते-गधे भी भोगते है, वृक्ष भी भोगते है अर्थात् सभी प्राणी सुखी-दुःखी होते है । अगर मनुष्यने केवल सुखी-दुःखी होनेमें ही समय बिता दिया तो मनुष्य-जन्म सफल नहीं होगा । नफा हो गया, नुकसान हो गया; संयोग हो गया, वियोग हो गया; आज तो मौज हो गयी, आज तो बड़ा दुःख हो गया; आज तो लाभ हो गया, आज तो हानि हो गयी‒ऐसे थपेड़े तो सभी खाते हैं । देवताओंको देख लो, नरकोंके जीवोंको देख लो, चौरासी लाख योनिवाले जीवोंको देख लो, चाहे किसीको देख लो । अगर ऐसे थपेड़े मनुष्य भी खाता रहे तो यह मनुष्य-जन्मकी सफलता नहीं है; क्योंकि यह चीज (सुख-दुःख आदि) तो कहीं भी, किसी भी योनिमें मिल जायगी । कुत्ता हो जाय चाहे गधा हो जाय, सूअर हो जाय चाहे ऊँट हो जाय, वृक्ष हो जाय चाहे दूब हो जाय, यह चीज सबमें मिल जायगी अर्थात् यह चीज किसी भी योनिमें दुर्लभ नहीं है, सब जगह सुलभ है ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
 ‒‘साधकोंके प्रति’ पुस्तकसे