May
01
(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक सन्तने लिखा है कि हमारेसे दुनिया राजी नहीं हुई तो हमने
विचार किया कि वह राजी क्यों नहीं हुई ? विचार आया कि हम दुनियाके काम नहीं आये । अगर हम दुनियाके काम
आते तो दुनिया राजी हो जाती । दुनियाके काम वही आता है, जो
कुछ नहीं चाहता । कुछ भी चाहनेवाला सबके काम नहीं आ सकता । ऐसा विचार करके हमने इच्छा
छोड़ दी । इच्छा छोड़ते ही मनमें आया कि अगर हम दुनियाके काम नहीं आये तो दुनिया भी हमारे
काम नहीं आयी । दोनोंमें समता हो गयी । न दुनियाका दोष, न हमारा
दोष । अब जिस तरहसे भगवान् रखेंगे, उसी तरहसे हम रहेंगे । हमें खाना ही नहीं है,
बात सुनानी ही नहीं है,
किसीसे मिलना ही नहीं है । कोई कहे खाओ तो खा लिया । कोई कहे
सुनाओ तो सुना दिया । कोई कहे मिलो तो मिल लिया । कोई न खिलाये तो मौज,
न सुनना चाहे तो मौज,
न मिलना चाहे तो मौज ! इतनी-सी बातसे
परमात्माकी प्राप्ति हो जायगी ! परमात्माकी प्राप्ति जितनी सरल है, उतना
सरल कोई काम है ही नहीं ।
जो हमारे बिना रह सकता है, उसके
बिना हम बड़े आनन्दसे रह सकते हैं । एक सन्तने कहा कि हमारी आँखें चली गयीं तो दुःख हुआ । फिर विचार आया कि हमारे
बिना आँखें रह सकती हैं तो हम भी आँखोंके बिना रह सकते हैं । जब आँखोंको हमारी जरूरत
नहीं तो फिर हमारेको भी आँखोंकी जरूरत नहीं । अब मनमें ही नहीं आती कि आँखोंसे देखें
। ऐसे ही हमारे बिना आप रह सकते हैं तो आपके बिना हम भी मौजसे रह सकते हैं । कितनी
ऊँची बात है और कितनी सीधी-सरल है ! अपनी कोई इच्छा हो ही नहीं । न खानेकी इच्छा हो,
न सुनानेकी इच्छा हो,
न मिलनेकी इच्छा हो । इससे सुगम बात और क्या होगी ?
इसमें न जप है, न ध्यान है, न स्वाध्याय है ! संसारके साथ यह सम्बन्ध रहे कि कोई जैसा खिलाये,
वैसा खा ले । जैसा पिलाये,
वैसा पी ले । मिलना चाहे तो मिल ले । इस तरह संसारमें हम बड़े
आनन्दसे रह सकते हैं ! गीतामें आया है‒
यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः ।
समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते ॥
(४ । २२)
‘जो फलकी इच्छाके बिना अपने-आप जो कुछ मिल जाय, उसमें सन्तुष्ट रहता है और ईर्ष्यासे रहित, द्वन्द्वोंसे रहित तथा सिद्धि और असिद्धिमें सम है, वह कर्म करते हुए भी उससे नहीं बँधता ।’
सन्तोंने कहा है‒
जाहि विधि राखे राम, ताहि
विधि रहिये,
सीताराम सीताराम सीताराम
कहिये ।
कहहु भगति पथ कवन प्रयासा ।
जोग न मख जप तप उपवासा ॥
(मानस, उत्तर॰ ४६ । १)
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्यकी खोज’ पुस्तकसे
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