।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.२०७३, शनिवार
वटसावित्री-व्रत, श्राद्धादिकी अमावस्या
कल्याणकारी प्रश्नोत्तर



(गत ब्लॉगसे आगेका)

समझाना तो गुरु, सन्त, शास्त्र आदिकी जिम्मेवारी है, पर समझी हुई बातको धारण करना, स्वीकार करना हमारी जिम्मेवारी है । जितने भी समझवाले व्यक्ति हैं, वे सब नासमझ व्यक्तियोंके ऋणी हैं । अन्नवाले भूखोंके ऋणी हैं । ज्ञानी अज्ञानियोंके ऋणी हैं । उनको ‘ज्ञानी’ की पदवी अज्ञानियोंसे ही मिली है । अगर अज्ञानी न हों तो उनको ज्ञानी कौन कहेगा ? ऐसे ही धनी निर्धनोंके ऋणी हैं । उनको धनीकी पदवी निर्धनोंके कारण ही मिली है । अगर सब-के-सब धनी हों तो उनको धनी कौन कहेगा ? अतः उनको निर्धनोंकी सेवा करके उऋण हो जाना चाहिये । अगर वे अपना ऋण नहीं उतारेंगे तो उनको दुःख पाना पड़ेगा ।

दो आदमी सदा ऋणी रहते हैं‒एक बेईमान और दूसरा अभावग्रस्त । बेईमान आदमी देना चाहता ही नहीं और अभावग्रस्त आदमीके पास देनके लिये है ही नहीं । परन्तु भगवान् और सन्त-महात्मा कभी किंचिन्मात्र भी किसीके ऋणी नहीं रहते । हाँ, अगर उनकी बातोंको कोई सुने ही नहीं, स्वीकार करे ही नहीं तो वे क्या करें ?

प्रश्नपरमात्माकी असली भूख कैसे लगे ?

स्वामीजीहमें भोग और संग्रह मिल जाय, मान-बड़ाई मिल जाय, आदर मिल जाय, वाहवाही मिल जाय‒यह भूख जबतक है, तबतक परमात्माकी भूख कैसे लग सकती है ? नहीं लग सकती । हम भले ही आज मर जायँ, भले ही हमारी निन्दा हो जाय, तिरस्कार हो जाय, कोई हमें सभाके बीचमें जूते मारकर निकाल दे तो यह हमें स्वीकार है, पर हमें परमात्माको प्राप्त करना ही हैं‒ऐसी लगन हो जायगी तो परमात्माकी प्राप्ति अवश्य हो जायगी । परन्तु भोगोंकी इच्छा रहेगी तो न इच्छा पूरी होगी, न परमात्मतत्त्व मिलगा, प्रत्युत जन्म-जन्मान्तरतक दुःख पाते रहेंगे ।

संसारमें कितने ही भोग, रुपये, मान-आदर आदि मिल जायँ, पर उनमें राजी न हों और परमात्मप्राप्तिके लिये व्याकुल हो जायँ तो बिना गुरुके, बिना उपदेशके अपने-आप परमात्मतत्त्व मिल जायगा । अपनी वर्तमान स्थितिमें सन्तोष करना महान् बाधक है ।

पाँच सात साखी कही, पद गायो दस दोय ।
दरिया कारज ना  सरै,   पेट  भराई  होय ॥

थोड़ा-बहुत सीख लिया, दूसरोंको सुना दिया तो इससे पेट-भराई हो जायगी, भिक्षा मिल जायगी, लोग समझेंगे कि महाराज बड़े अच्छे हैं, पर इससे परमात्मतत्त्व नहीं मिलेगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सन्त समागम’ पुस्तकसे