।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद शुक्ल एकादशी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
पद्मा एकादशी-व्रत (वैष्णव), श्रीवामन द्वादशी-व्रत
गृहस्थोंके लिये



(यदि यह लेख आपके मनके अनुकूल न भी पड़े तो भी कम-से-कम एक बार तो अवश्य ही मनोयोगपूर्वक पढ़नेकी कृपा करें‒यह प्रार्थना है ।)

जनसंख्या-वृद्धिको रोकनेके लिये सरकारने परिवार-नियोजन कार्यक्रम चला रखा है, जिसके अन्तर्गत वह गर्भाधानको रोकनेके लिये अथवा गर्भपात-जैसे महापापको करनेके लिये लोगोंको प्रोत्साहित कर रही है । इसके लिये वह नये-नये उपायोंकी खोज करके उनका व्यापक स्तरपर प्रचार एवं प्रसार कर रही है । सरकारका यह कार्यक्रम कहाँतक उचित है‒इसपर कुछ विचार किया रहा है‒

परिवार-नियोजन-कार्यक्रमके प्रचार एवं प्रसारके कारण

परिवार-नियोजन-कार्यक्रमका आरम्भ सर्वप्रथम उन पश्चिमी देशोंमें हुआ था, जो ईश्वर, धर्म और परलोकसे प्रायः अनभिज्ञ हैं । वहाँके लोगोंने यह विचार किया कि हमारी जनसंख्या जिस गतिसे बढ़ रही है, उसको देखते हुए भविष्यमें हमें भरपेट खानेको नहीं मिलेगा, रहनेके लिये पर्याप्त जगह नहीं मिलेगी, हमारा जीवन-निर्वाह कठिन हो जायगा, हमारा जीवन- स्तर गिर जायगा आदि । उन्होंने जनसंख्याकी वृद्धिकी ओर तो देखा, पर इस ओर नहीं देखा कि जनसंख्या-वृद्धिके साथ-साथ जीवन-निर्वाहके साधनोंकी भी वृद्धि होती है; क्योंकि आवश्यकता ही आविष्कारकी जननी है । फलस्वरूप परिवार-नियोजन-कार्यक्रमसे जीवन-निर्वाहके साधनोंमें तो वृद्धि नहीं हुई, पर ऐसी अनेक बुराइयोंकी वृद्धि अवश्य हुई, जिनसे समाजका घोर पतन हुआ !

वास्तवमें जीवन-निर्वाहके साधनोंमें कमी होनेका कारण जनसंख्याकी वृद्धि नहीं है, प्रत्युत अपने सुखभोगकी इच्छाओंकी वृद्धि है । भोगेच्छाकी वृद्धि होनेसे मनुष्य आरामतलब और अकर्मण्य हो जाता है, जिससे वह जीवन-निर्वाहके साधनोंका उपभोग तो अधिक करता है, पर उत्पादन कम करता है । इससे जीवन-निर्वाहके साधनोंमें कमी आने लगती है । इतना ही नहीं, अपनी इच्छाओंकी पूर्तिके लिये मनुष्य तरह-तरहके पाप करने लगता है, जिनमें गर्भपात आदि संतति-निरोधके उपाय भी शामिल हैं । गीताने काम अर्थात् भोगेच्छाको सम्पूर्ण पापोंका मूल बताया है‒

काम   एष  क्रोध    एष   रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् ॥
                                                       (३ । ३७)

‘रजोगुणसे उत्पन्न हुआ यह काम ही क्रोध है । यह बहुत खानेवाला और महापापी है । इस विषयमें तू इसको ही वैरी जान ।’

 (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे