।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.२०७३, शनिवार
श्रीहनुमज्जयन्ति
स्त्री-सम्बन्धी बातें


(गत ब्लॉगसे आगेका)

विवाहके समय स्त्री-पुरुष दोनों ही परस्पर वचनबद्ध होते हैं । उसके अनुसार पतिको सलाह देनेका, पतिसे अपने मनकी बात कहनेका पत्नीको अधिकार है । गान्धारी कितने ऊँचे दर्जेकी पतिव्रता थी कि जब उसने सुना कि जिससे मेरा विवाह होनेवाला है, उसके नेत्र नहीं हैं, तो उसने भी अपने नेत्रोंपर पट्टी बाँध ली; क्योंकि नेत्रोंका जो सुख पतिको नहीं है, वह सुख मुझे भी नहीं लेना है! परन्तु समय आनेपर उसने भी पति (धृतराष्ट्र)-को समझाया कि आपको दुर्योधनकी बात नहीं माननी चाहिये, नहीं तो कुलका नाश हो जायगा । ऐसी सलाह उसने कई बार दी, पर धृतराष्ट्रने उसकी सलाह नहीं मानी, जिससे कुलका नाश हो गया । तात्पर्य है कि पतिको अच्छी सलाह देनेका पत्नीको पूरा अधिकार है ।

शास्त्रोंमें आया है कि जो पतिव्रता स्त्री तन-मनसे पतिकी सेवा करती है, अपने धर्मका पालन करती है, वह मृत्युके बाद पतिलोकमे (पतिके पास) जाती है । अगर पति दुश्चरित्र है तो पतिका लोक नरक होगा; अतः पतिव्रता स्त्रीका लोक भी नरक ही होना चाहिये ! परन्तु पतिव्रता स्त्री नरकोंमें नहीं जा सकती; क्योंकि उसने शास्त्रकी, भगवान्‌की, सन्त-महात्माओंकी आज्ञाका पालन किया है, पातिव्रतधर्मका पालन किया है । अतः वह अपने पातिव्रत-धर्मके प्रभावसे पतिका उद्धार कर देगी अर्थात् जो लोक पत्नीका होगा, वही लोक पतिका हो जायगा । तात्पर्य है कि अपने कर्तव्यका पालन करनेवाला मनुष्य दूसरोंका उद्धार करनेवाला बन जाता है ।

प्रश्न‒अगर पति पत्नीको व्यभिचारके लिये प्रेरित करे तो पत्नीको क्या करना चाहिये ?

उत्तर‒पतिको यह अधिकार नहीं है कि वह अपनी स्त्री दूसरोंको दे; क्योंकि पत्नीके पिताने पतिको ही दान दिया है । अन्न, वस्त्र आदिका दान लेनेवाला तो अन्न आदि दूसरोंको दे सकता है, पर कन्यादान लेनेवाला पति दूसरोंको अपनी पत्नी नहीं दे सकता । अगर वह ऐसा करता है तो वह महापापका भागी होता है । ऐसी स्थितिमें पत्नीको पतिकी बात बिलकुल नहीं माननी चाहिये । उसको अपने पतिसे साफ कह देना चाहिये कि मेरे पिताने आपको ही कन्यादान किया है; अतः दूसरोंको देनेका आपका अधिकार नहीं है । इस विषयमें वह पतिकी आज्ञा भंग करती है तो उसको कोई दोष नहीं लगता; क्योंकि पतिकी यह आज्ञा अन्याय है और अन्यायको स्वीकार करना अन्यायको प्रोत्साहित करना है जो कि सबके लिये अनुचित है । दूसरी बात, अगर पत्नी पतिकी धर्मविरुद्ध आज्ञाका पालन करेगी तो इस पापके कारण पतिको नरकोंकी प्राप्ति होगी । अतः पत्नीको ऐसी आज्ञाका पालन नहीं करना चाहिये, जिससे पतिको नरकोंमें जाना पड़े ।

अगर पति स्वयं भी शास्त्रनियमके विरुद्ध स्त्रीसंग करता है तो वह अन्याय, पाप करता है । धर्मयुक्त काम भगवान्‌का स्वरूप है‒‘धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ॥’ (गीता ७ । ११); अतः इसमें दोष, पाप नहीं है । परन्तु धर्मसे विरुद्ध स्त्रीको मनमाना काममें लेना अन्याय है । मनुष्यको सदा शास्त्रकी मर्यादाके अनुसार ही प्रत्येक कार्य करना चाहिये (गीता १६ । २४) ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे