।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल तृतीया, वि.सं.२०७३, मंगलवार
गीतामें भगवन्नाम


(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒नहि कलि करम न भगति बिबेकू’ । राम नाम अवलंबन एकू ॥’ (मानस १ । २७ । ४)‒ ऐसा कहनेका क्या तात्पर्य है ?

उत्तर‒कलियुगमें यज्ञादि शुभ-कर्मोंका सांगोपांग होना बहुत कठिन है और उनके विधि-विधानको ठीक तरहसे जाननेवाले पुरुष भी बहुत कम रह गये हैं तथा शुद्ध गौघृत आदि सामग्री मिलनी भी कठिन हो रही है । अतः कलियुगमें शुभ-कर्मोंका अनुष्ठान सांगोपांग न होनेसे, उसमें विधि-विधानकी कमी रहनेसे कर्ताको दोष लगता है ।   

वैधीभक्ति विधि-विधानसे की जाती है । उसमें किस इष्टदेवका किस विधिसे पूजा-पाठ होना चाहिये‒इसको जाननेवाले बहुत कम है । अतः वह भक्ति करना भी इस कलियुगमें कठिन है ।

ज्ञानमार्ग कठिन है और ज्ञानमार्गकी साधना बतानेवाले अनुभवी पुरुषोंका मिलना भी बहुत कठिन है । अतः विवेकमार्गमें चलना कलियुगमें बहुत कठिन है । तात्पर्य है कि इस कलियुगमें कर्म, भक्ति और ज्ञान‒इन तीनोंका होना बहुत कठिन है, पर भगवान्‌का नाम लेना कठिन नहीं है । भगवान्‌का नाम सभी ले सकते है; क्योंकि उसमें कोई विधि-विधान नहीं है । उसको बालक, स्त्री, पुरुष, वृद्ध, रोगी आदि सभी ले सकते हैं और हर समय, हर परिस्थितिमें, हर अवस्थामें ले सकते हैं ।

नाम एक सम्बोधन है, पुकार है । उसमें आर्तभावकी ही मुख्यता है, विधिकी मुख्यता नहीं । अतः भगवान्‌का नाम लेकर हरेक मनुष्य आर्तभावसे भगवान्‌को पुकार सकता है ।

शंका‒नामजपमें मन नहीं लगता और मन लगे बिना नामजप करनेमें कुछ फायदा नहीं ! कहा भी है‒

                    माला  तो  कर में  फिरे, जीभ  फिरै मुख  माहिं ।
                    मनुवाँ तो चहुँ दिसि फिरै,यह तो सुमिरन नाहिं ॥

 समाधान‒मन नहीं लगेगा तो सुमिरन’ (स्मरण) नहीं होगा‒यह बात सच्ची है, पर नामजप नहीं होगा‒यह बात दोहेमें नहीं कही गयी है । मन नहीं लगनेसे सुमिरन नहीं होगा तो नहीं सही, पर नामजप तो हो ही जायगा ! नामजप कभी व्यर्थ हो ही नहीं सकता; अतः मन लगे चाहे न लगे, नाम‒जप करते रहना चाहिये ।

जब मन लगेगा, तब नामजप करेंगे‒ऐसा होना सम्भव नहीं है । हाँ, अगर हम नामजप करने लग जाये तो मन भी लगने लग जायगा; क्योंकि मनका लगना नामजपका परिणाम है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे