।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी, वि.सं.२०७३, शनिवार
गीतामें फलसहित विविध उपासनाओंका वर्णन



(गत ब्लॉगसे आगेका)

जिन मनुष्योंका स्वभाव सौम्य है, दूसरोंको दुःख देनेका नहीं है; परन्तु सांसारिक वस्तु, स्त्री, पुत्र, धन, जमीन आदिमें जिनकी ममता-आसक्ति रहती है, ऐसे मनुष्य मरनेके बाद सौम्य स्वभाववाले भूत-प्रेत बनते हैं । ये किसीमें प्रविष्ट हो जाते हैं तो उसको दुःख नहीं देते और अपनी गतिका उपाय भी बता देते हैं ।

जिनको विद्या आदिका बहुत अभिमान, मद होता है; उस अभिमानके कारण जो दूसरोंको नीचा दिखाते हैं, दूसरोंका अपमान-तिरस्कार करते हैं, दूसरोंको कुछ भी नहीं समझते, ऐसे मनुष्य मरकर ब्रह्मराक्षस’ (जिन्न) बनते हैं । ये किसीमें प्रविष्ट हो जाते हैं, किसीको पकड़ लेते हैं तो बिना अपनी इच्छाके उसको छोड़ते नहीं । इनपर कोई तन्त्र-मन्त्र नहीं चलता । दूसरा कोई इनपर मन्त्रोंका प्रयोग करता है तो उन मन्त्रोंको ये स्वयं बोल देते हैं ।

एक सच्ची घटना है । दक्षिणमें मोरोजी पन्त नामक एक बहुत बड़े विद्वान् थे । उनको विद्याका बहुत अभिमान था । वे अपने समान किसीको विद्वान् मानते ही नहीं थे और सबको नीचा दिखाते थे । एक दिनकी बात है, दोपहरके समय वे अपने घरसे स्नान करनेके लिये नदीपर जा रहे थे । मार्गमें एक पेड़पर दो ब्रह्मराक्षस बैठे हुए थे । वें आपसमें बातचीत कर रहे थे । एक ब्रह्मराक्षस बोला‒हम दोनों तो इस पेड़की दो डालियोंपर बैठे हैं, पर यह तीसरी डाली खाली है; इसपर कौन आयेगा बैठनेके लिये ? दूसरा ब्रह्मराक्षस बोला‒यह जो नीचेसे जा रहा है न ? यह आकर यहाँ बैठेगा; क्योंकि इसको अपनी विद्वत्ताका बहुत अभिमान है । उन दोनोके संवादको मोरोजी पन्तने सुना तो वे वहीं रुक गये और विचार करने लगे कि अरे ! विद्याके अभिमानके कारण मेरेको ब्रह्मराक्षस बनना पड़ेगा, प्रेतयोनियोंमें जाना पड़ेगा ! अपनी दुर्गतिसे वे घबरा गये और मन-ही-मन सन्त ज्ञानेश्वरजीके शरणमें गये कि मैं आपके शरणमें हूँ आपके सिवाय मेरेको इस दुर्गतिसे बचानेवाला कोई नहीं है । ऐसा विचार करके वे वहींसे आलन्दीके लिये चल पड़े, जहाँ संत ज्ञानेश्वरजी जीवित समाधि ले चुके थे । फिर वे जीवनभर वहीं रहे, घर आये ही नहीं । सन्तकी शरणमें जानेंसे उनका विद्याका अभिमान चला गया और सन्त-कृपासे वे भी सन्त बन गये !

जो स्त्री पर-पुरुषका चिन्तन करती रहती है तथा जिसकी पुरुषमें बहुत ज्यादा आसक्ति होती है, वह मरनेके बाद ‘चुड़ैलबन जाती है । भूत-प्रेतोंका प्रायः यह नियम रहता है कि पुरुष भूत-प्रेत पुरुषोंको ही पकड़ते है और स्त्री भूत-प्रेत स्त्रियोंको ही पकड़ते हैं; परन्तु चुड़ैल केवल पुरुषोंको ही पकड़ती है । चुड़ैल दो प्रकारकी होती है‒एक तो पुरुषका शोषण करती रहती है अर्थात् उसका खून चूसती रहती है, उसकी शक्ति क्षीण करती है; और दूसरी पुरुषका पोषण करती है, उसको सुख-आराम देती है । ये दोनों ही प्रकारकी चुड़ैलें पुरुषको अपने वशमें रखती हैं ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे