।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक शुक्ल तृतीया, वि.सं.२०७३, बुधवार
स्त्री-सम्बन्धी बातें


(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒स्त्री पुनर्विवाह क्यों नहीं कर सकती ?

उत्तर‒माता-पिताने कन्यादान कर दिया तो अब उसकी कन्या संज्ञा ही नहीं रही; अतः उसका पुनः दान कैसे हो सकता है ? अब उसका पुनर्विवाह करना तो पशुधर्म ही है ।

सकृदंशो  निपतति    सकृत्कन्या   प्रदीयते ।
सकृदाह ददानीति त्रीण्येतानि सतां सकृत् ॥
   (मनुस्मृति ९ । ४७, महाभारत वन २९४ । २६)

कुटुम्बमें धन आदिका बँटवारा एक ही बार होता है, कन्या एक ही बार दी जाती है और मैं दूँगा’‒यह वचन भी एक ही बार दिया जाता है । सत्पुरुषोंके ये तीनों कार्य एक ही बार होते हैं ।’

शास्त्रीय, धार्मिक, शारीरिक और व्यवहारिक‒चारों ही दृष्टियोंसे स्त्रीके लिये पुनर्विवाह करना अनुचित है । शास्त्रीय दृष्टिसे देखा जाय तो शास्त्रमें स्त्रीको पुनर्विवाहकी आज्ञा नहीं दी गयी है । धार्मिक दृष्टिसे देखा जाय तो पितृऋण पुरुषपर ही रहता है । स्त्रीपर पितृऋण आदि कोई ऋण नहीं है । शारीरिक दृष्टिसे देखा जाय तो स्त्रीमें कामशक्तिको रोकनेकी ताकत है, एक मनोबल है । व्यावहारिक दृष्टिसे देखा जाय तो पुनर्विवाह करनेपर उस स्त्रीकी पूर्वसन्तान कहाँ जायगी ? उसका पालन-पोषण कौन करेगा ? क्योंकि वह स्त्री जिससे विवाह करेगी, वह उस सन्तानको स्वीकार नहीं करेगा । अतः स्त्रीजातिको चाहिये कि वह पुनर्विवाह न करके ब्रह्मचर्यका पालन करे, संयमपूर्वक रहे ।

शास्त्रमें तो यहाँतक कहा गया है कि जिस स्त्रीकी पाँच-सात सन्तानें हैं, वह भी यदि पतिकी मृत्युके बाद ब्रह्मचर्यका पालन करती है तो वह नैष्ठिक ब्रह्मचारीकी गतिमें जाती है । फिर जिसकी सन्तान नहीं है, वह यदि पतिके मरनेपर ब्रह्मचर्यका पालन करती है तो उसकी नैष्ठिक ब्रह्मचारीकी गति होनेमें कहना ही क्या है ?

प्रश्न‒यदि युवा स्त्री विधवा हो जाय तो उसको क्या करना चाहिये ?

उत्तर‒जीवित अवस्थामें पति जिन बातोंको अच्छा मानते थे और जो बातें उनके अनुकूल थीं, उनकी मृत्युके बाद भी विधवा स्त्रीको उन्हींके अनुसार आचरण करते रहना चाहिये । उसको ऐसा विचार करना चाहिये कि भगवान्‌ने जो प्रतिकूलता भेजी है, यह मेरी तपस्याके लिये है । जान-बूझकर की गयी तपस्यासे यह तपस्या बहुत ऊँची है । भगवान्‌के विधानके अनुसार किये गये तप, संयमकी बहुत अधिक महिमा है । ऐसा विचार करके उसको मनमें हर समय उत्साह रखना चाहिये कि मैं कैसी भाग्यशालिनी हूँ कि भगवान्‌ने मेरेको ऐसा तप करनेका सुन्दर अवसर दिया है !

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे