Nov
29
।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष अमावस्या, वि.सं.२०७३, मंगलवार
भौमवती अमावस्या
घोर पापोंसे बचो


(गत ब्लॉगसे आगेका)

कुछ लोग कहते हैं कि जनसंख्या अधिक होनेसे पाप अधिक बढ़ गये हैं । यह बिलकुल गलत बात है । पाप जनसंख्या अधिक होनेसे नहीं बढ़ते, प्रत्युत मनुष्योंमें धार्मिकता और आस्तिकता न होनेसे तथा भोगेच्छा होनेसे बढ़ते हैं, जिसमें सरकार कारण है । लोगोंको शिक्षा ही ऐसी दी जा रही है, जिससे उनका धर्म और ईश्वरपरसे विश्वास उठ रहा है तथा भोगेच्छा बढ़ रही है । इसी कारण तरह-तरहके पाप बढ़ रहे हैं । इसी तरह बेरोजगारी, निर्धनता आदिका कारण भी जनसंख्याका बढ़ना नहीं है, प्रत्युत मनुष्योंमें अकर्मण्यता, प्रमाद, आलस्य, व्यसन आदिका बढ़ना है । मनुष्योंमें भोगबुद्धि बहुत ज्यादा हो गयी है । भोगी मनुष्य ही पापी, अकर्मण्य, प्रमादी, आलसी और व्यसनी होते हैं । साधन करनेवाले सात्त्विक मनुष्योंके पास तो खाली समय रहता ही नहीं !

किसी देशका नाश करना हो तो दो तरीके हैं‒पैदा न होने देना और मार देना । आज मनुष्योंको तो पैदा होनेसे रोक रहे हैं और पशुओंको मार रहे हैं । मनुष्योंके विनाशका नाम रखा है‒परिवार-कल्याण और पशुओंके विनाशका नाम रखा है‒मांस-उत्पादन ! जब विनाशकाल नजदीक आता है, तभी ऐसी विपरीत राक्षसी बुद्धि होती है । मन्दोदरी रावणसे कहती है‒

निकट काल  जेहि आवत साईं ।
तेहि भ्रम होइ तुम्हारिहि नाई ॥
                                                        (मानस, लंका ३७ । ४)

आजकलके मनुष्य तो राक्षसोंसे भी गये-बीते हैं ! राक्षसलोग तो देवताओंकी उपासना करते थे, तपस्या करते थे, मन्त्र-जप करते थे और उनसे शक्ति प्राप्त करते थे । परन्तु आजकलके मनुष्योंकी वृत्ति तो राक्षसोंकी (दूसरोंका नाश करनेकी) है, पर देवताओंको, तपस्याको, मन्त्र-जप आदिको मानते ही नहीं, प्रत्युत इनको फालतू समझते हैं !

जिस माँके लिये कहा गया है‒‘मात्रा समं नास्ति शरीरपोषणम्’ ‘माँके समान शरीरका पालन-पोषण करनेवाला दूसरा कोई नहीं है’, उसी माँका परिवार-नियोजन-कार्यक्रमके प्रचारसे इतना पतन हो गया है कि अपने गर्भमें स्थित अपनी ही सन्तानका नाश कर रही है ! एक सास-बहूकी बात मैंने सुनी है । बहू दो सन्तानके बाद गर्भपात करानेवाली थी, पर सासने उसको ऐसा करनेसे रोक दिया । उसके गर्भसे लड़केने जन्म लिया । फिर चौथी बार गर्भवती होनेपर उसने सासको बिना बताये पीहरमें जाकर गर्भपात और ऑपरेशन करवा लिया । अब वह तीसरा लड़का बड़ा हुआ तो उसकी अंग्रेजी स्कूलमें भरती करा दिया । सासने मना किया कि हमारी साधारण स्थिति है, अँग्रेजी स्कूलमें खर्चे बहुत होते हैं और वहाँ बालकपर संस्कार भी अच्छे नहीं पड़ते । इसपर बहू सासको डाँटती है कि यह आफत तुमने ही पैदा की है ! तुमने ही गर्भपात करानेसे रोका था । आज माँकी यह दशा है कि अपनी सन्तान भी नहीं सुहाती । सासने घोर पापसे बचाया, पर बहू उसकी ताड़ना करती है । अन्तःकरणमें पापका कितना आदर है !

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे