।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष शुक्ल पंचमी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
गीतामें फलसहित विविध उपासनाओंका वर्णन


  (गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्र‒कुछ तांत्रिकलोग भूत-प्रेतोंको अपने वशमें करके उनसे अपने घरका, खेतका काम कराते हैं, तो ऐसा करना उचित है या अनुचित ?

उत्तर‒किसी भी जीवको परवश करना मनुष्यके लिये उचित नहीं है । हाँ, जैसे किसी मनुष्यको मजदूरी देकर उससे काम कराते हैं, ऐसे ही भूत-प्रेतोंको खुराक देकर, उनको प्रसन्न करके उनसे काम करानेमें कोई दोष नहीं है । परन्तु पारमार्थिक साधनामें लगे हुए साधकको ऐसा नहीं करना चाहिये । ऐसा काम वे ही लोग कर सकते हैं, जो संसारमें ही रचे-पचे रहना चाहते हैं ।

प्रश्र‒भूत-प्रेतोंको खुराक कैसे मिलती है ? वे कैसे तृप्त होते हैं ?

उत्तर‒भूत-प्रेतोंका शरीर वायुप्रधान होता है; अतः इत्र आदि सुगन्धित वस्तुओंको सूँघकर उनको खुराक मिल जाती है और वे बड़े प्रसन्न हो जाते हैं । उनके निमित्त किसी ब्राह्मणको अथवा अपनी बहन, बेटी या भानजीको बढ़िया-बढ़िया मिठायी खिलानेसे उनको खुराक मिल जाती है ।

दस-बारह वर्षका एक बालक जलमें डूबकर मर गया और प्रेत बन गया । वह अपनी बहनमें आया करता और अपना दुःख सुनाया करता था । एक दिन वह अपनी बहनमें आकर बोला कि मैं बहुत भूखा हूँ । तब उसके परिवारवालोंने उसके नामसे एक ब्राह्मणको भोजन कराया । जब ब्राह्मण भोजन करने लगा, तब जैसे भोजन करते समय मनुष्यका मुख हिलता है, वैसे ही दूसरे कमरेमें बैठी उस प्रेतकी बहनका भी मुख हिलने लगा । जब ब्राह्मणने भोजन कर लिया, तब वह प्रेत बहनके मुखसे बोला कि मेरी तृप्ति हो गयी ! अतः प्रेतात्माके नामसे शुद्ध-पवित्र ब्राह्मणको भोजन करानेसे वह भोजन उसको मिलता है ।

पासमें ही तालाब है, नदी बह रही है और उसके जलको प्रेत देखते भी हैं, पर वे उस जलको पी नहीं सकते, प्यासे ही रहते हैं ! स्नानके बाद प्रेतके नामसे अथवा अज्ञात नामवाले प्रेतात्माओंको जल मिल जाय’‒इस भावसे गीली धोतीको किसी स्थानपर निचोड़ दिया जाय तो प्रेत उस जलको पी लेते हैं । शौचसे बचा हुआ जल काँटेदार वृक्षपर अथवा आकके पौधेपर डाल दिया जाय तो उस जलको भी प्रेत पी लेते हैं और तृप्त हो जाते हैं ।


तुलसीदासजी महाराज शौच जाते थे तो बचा हुआ जल प्रतिदिन यों ही एक काँटेवाले पेड़पर डाल दिया करते थे । उस पेड़में एक प्रेत रहता था जो उस अशुद्ध जलको पी लेता था । एक दिन वह प्रेत तुलसीदासजीके सामने प्रकट होकर बोला‒मैं बहुत प्यासा मरता था, तुम्हारे जलसे अब मैं बहुत तृप्त हो गया हूँ । तुम मेरेसे जो माँगना चाहो, माँग लो । तुलसीदासजी महाराजको भगवद्दर्शनकी लगन लगी हुई थी; अतः उन्होंने कहा‒मेरेको भगवान् रामके दर्शन करा दो !

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे