।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा, वि.सं.२०७३, शनिवार
गीतामें भगवान्‌की न्यायकारिता और दयालुता


(गत ब्लॉगसे आगेका)

भगवान्‌ने कहा है कि दुराचारी-से-दुराचारी मनुष्य भी अगर मेरी तरफ चलनेका दृढ़ निश्चय करके अनन्यभावसे मेरा स्मरण करता है तो उसको साधु ही मानना चाहिये । वह बहुत जल्दी धर्मात्मा बन जाता है और सदा रहनेवाली शान्तिको प्राप्त हो जाता है (९ । ३०‒३१) । जब दुराचारी-से-दुराचारी मनुष्य भी भगवद्‌भक्त हो सकता है और शाश्वती शान्तिको प्राप्त हो सकता है, तो फिर भगवद्‌भक्त भी दुराचारी, पापात्मा बन सकता है और उसका भी पतन हो सकता है; परन्तु भगवान्‌का कानून ऐसा नहीं है । भगवान्‌के कानूनमें बहुत-ही दया भरी हुई है कि दुराचारीका तो कल्याण हो सकता है, पर भक्तका कभी पतन नहीं हो सकता‒ ‘न में भक्तः प्रणश्यति’ (९ । ३१) । इसमें भगवान्‌की न्यायकारिता और दयालुता‒दोनों ही हैं ।

यहाँ एक शंका हो सकती है कि अगर भक्तका कभी पतन नहीं होता, तो फिर भगवान्‌ने अर्जुनको अपना भक्त स्वीकार करते हुए ऐसा क्यों कहा कि अगर तू अहंकारके कारण मेरी बात नहीं मानेगा तो तेरा पतन हो जायगा (१८ । ५८) ? इसका समाधान यह है कि जब भक्त अभिमानके कारण भगवान्‌की बात नहीं मानेगा, तब वह भक्त नहीं रहेगा और उसका पतन हो जायगा; परन्तु यह सम्भव ही नहीं है कि भक्त भगवान्‌की बात न माने । अर्जुनको तो भगवान्‌ने केवल धमकाया है, डराया है । वास्तवमें अर्जुनने भगवान्‌की बात मानी है और उनका पतन नहीं हुआ है (१८ । ७३) ।

जो सकामभावसे शुभ कर्म करता है, उसको शुभ कर्मके अनुसार स्वर्ग आदिमें भेजना‒यह भगवान्‌का न्याय है; और वहाँ पुण्यकर्मोंका फल भुगताकर उसको शुद्ध करना‒यह दया है । ऐसे ही जो अशुभ कर्म करता है, उसको नरकों और चौरासी लाख योनियोंमें भेजना‒यह न्याय है; और वहाँ पापकर्मोंका फल भुगताकर उसको शुद्ध करना, उसको अपनी ओर खींचना‒यह दया है । जैसे, किसीको लम्बे समयतक कोई कष्टदायक बीमारी आती है तो जब वह ठीक हो जाती है, तब उस व्यक्तिको भगवान्‌की कथा, भगवन्नाम आदि अच्छा लगता है । इस प्रकार कर्मोंके अनुसार बीमारी आना तो न्यायकारिता है और उसके फलस्वरूप भगवान्‌में रुचिका बढ़ना दयालुता है ।

         मनुष्य पाप, अन्याय आदि तो स्वेच्छासे करते हैं और उनके फलस्वरूप कैद, जुर्माना, दण्ड आदि परेच्छासे भोगते है । इसमें कर्मोंके अनुसार दण्ड आदि भोगना तो न्यायकारिता हैं और समय-समयपर ‘मैंने गलती की, जिससे मुझे दण्ड भोगना पड़ रहा है । अगर मैं गलती न करता तो मुझे दण्ड क्यों भोगना पड़ता ?’‒इस तरहका जो विचार आता है, होश आता है‒यह भगवान्‌की दयालुता है ।

कर्मोंके अनुसार अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थिति भेजना‒यह भगवान्‌की न्यायकारिता है; और अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितिमें सुखी-दुःखी न होनेसे मनुष्यका कल्याण हो जाता है‒यह भगवान्‌की दयालुता है ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे