।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन कृष्ण तृतीया, वि.सं.२०७३, सोमवार
गीतामें भगवान्‌का विविध रूपोंमें प्रकट होना



स्वभक्तभावेन परिप्लुतेन   भक्तस्य चाज्ञापरिपालकेन ।
स्वकं हि कृष्णेन रथस्थितेन विभिन्नरूपं प्रकटीकृतं च ॥

अवतारके समय भगवान् गुप्तरूपसे रहते है और सबके सामने अपने-आपकों भगवद्रूपसे प्रकट नहीं करते (७ । २५) । परंतु अर्जुनके भावको देखते हुए उनके सामने भगवान् गीतामें कृपापूर्वक अनेक रूपोंमें प्रकट होते हैं; जैसे‒

भक्त मेरेसे जो काम कराना चाहता है और मेरेको जिस रूपमें देखना चाहता है, मैं वही काम करता हूँ और उसके भावके अनुसार वैसा ही बन जाता हूँ‒इस प्रकार अपनेको भक्तोंके अधीन बतानेके लिये भगवान् पहले अध्यायमें अर्जुनके सामने ‘सारथि’‒रूपसे प्रकट होते हैं (१ । २१‒२४) ।

जो मनुष्य कर्तव्य-अकर्तव्य, सत्-असत् आदिके विषयमें उलझा हो, स्वयं कोई निर्णय नहीं कर पा रहा हो, वह मेरी शरण होकर मेरेको पुकारे तो मैं उसको सब बता देता हूँ, उसकी उलझनको सुलझा देता हूँ‒यह बात बतानेके लिये भगवान् दूसरे अध्यायमें किंकर्तव्यविमूढ़ और शरणापन्न अर्जुनके सामने ‘गुरू’‒रूपसे प्रकट होते हैं (२ । ७) ।

परिस्थितिके अनुसार मैं जिस वर्णमें प्रकट होता हूँ और जिस आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ आदि) में रहता हूँ उसीके अनुसार कर्तव्यका पालन करता है‒यह बात बतानेके लिये भगवान् तीसरे अध्यायमें अर्जुनके सामने ‘आदर्श’‒रूपसे प्रकट होते हैं (३ । २२‒२४) ।

मैं चाहे गुणों और कर्मोंके अनुसार प्राणियोंकी रचना करूँ, चाहे सूर्य आदिको उपदेश देनेवाला बनूँ, चाहे अवतार लेकर धर्मकी स्थापना, दुष्टोंका विनाश और भक्तोंकी रक्षा करूँ, चाहे पुत्ररूपसे माता-पिताकी आज्ञाका पालन करूँ, चाहे मात्र प्राणियोंका मालिक बनूँ, पर मेरी ईश्वरतामें कुछ भी फर्क नहीं पड़ता‒यह बात बतानेके लिये भगवान् चौथे अध्यायमें अर्जुनके सामने ‘ईश्वर’‒रूपसे प्रकट होते हैं  (४ । ६) ।

सभी यज्ञों और तपोंका भोक्ता मैं ही हूँ सम्पूर्ण लोकोंका स्वामी मैं ही हूँ तथा प्राणियोंका बिना कारण हित करनेवाला भी मैं ही हूँ‒इस प्रकार अपनी महत्ता बताकर अर्जुनका तथा मनुष्योंका हित करनेके लिये भगवान् पाँचवे अध्यायमें अर्जुनके सामने ‘सर्वलोक- महेश्वर’‒रूपसे प्रकट होते हैं (५ । २९) ।

ध्यान करनेवाले साधकोंके लिये सबमें मेरेको और मेरेमें सबको देखना अर्थात् जहाँ-जहाँ मन जाय, वहाँ-वहाँ (सब जगह) मेरेको देखना बहुत जरूरी है । कारण कि ऐसा होनेपर ही मन मेरेमें तल्लीन हो सकता है‒यह बात बतानेके लिये भगवान् छठे अध्यायमें अर्जुनके सामने ‘व्यापक’‒रूपसे प्रकट होते है (६ । ३०) ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे