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(गत ब्लॉगसे आगेका)
गीताके प्रचारकी भी बड़ी महिमा है । गीताका प्रचार
करनेवालेके लिये भगवान् कहते हैं‒
य इदं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति ।
भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशय
॥
न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः ।
भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि ॥
(गीता १८ । ६८-६९)
‘मेरेमें पराभक्ति करके जो इस परम गोपनीय संवाद
(गीता-ग्रन्थ)-को मेरे भक्तोंमें कहेगा, वह मुझे ही प्राप्त होगा‒इसमें कोई संदेह नहीं है । उसके समान
मेरा अत्यन्त प्रिय कार्य करनेवाला मनुष्योंमें कोई भी नहीं है और इस भूमण्डलपर उसके
समान मेरा दूसरा कोई प्रियतर होगा भी नहीं ।’
इन दो श्लोकोंसे प्रेरणा पाकर ही सेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाने
गीताका प्रचार करनेके लिये ‘गीताप्रेस’ खोला । एक दिन मैंने उनसे कहा कि ‘आपने गीताका
बहुत प्रचार किया है’ तो उन्होंने कहा कि ‘बालक जन्मते ही गीता बोले, तब समझें कि गीताका कुछ प्रचार हुआ है, नहीं तो क्या प्रचार हुआ !’ जैसे गोस्वामी तुलसीदासजी महाराजने जन्मते ही ‘राम’
बोला था, जिस कारण उनका नाम ‘रामबोला’ रखा गया । इसी तरह पूर्वजन्ममें
गीताका अभ्यास तेज होगा तो बालक जन्मते ही ‘गीता’ बोल देगा अथवा गीताका कोई पद ही बोल
देगा ।
गीताप्रेससे प्रकाशित गीताकी ‘तत्त्व-विवेचनी’ और ‘साधक-संजीवनी’
हिन्दी टीकाओंका लोगोंपर बड़ा असर पड़ा है । इसी तरह ‘गीता-दर्पण’, ‘गीता-माधुर्य’, ‘गीता-ज्ञान-प्रवेशिका’ आदि पुस्तकोंका भी लोगोंपर बड़ा विचित्र
असर पड़ा है । जो आदमी खोज करते हैं, गहरा उतरकर विचार करते हैं, उनके सामने ऐसी पुस्तकें आती हैं, तब इनकी वास्तविकताका पता चलता
है । ‘ध्यानावस्थामें प्रभुसे वार्तालाप’ और ‘श्रीप्रेमभक्तिप्रकाश’–इन दोनों पुस्तकोंको
पढ़नेसे पाठकके भीतर विचित्रता आती है । ‘श्रीप्रेमभक्तिप्रकाश’ के अनुसार चिन्तन किया
जाय तो सुगमतासे ध्यान लगने लगता है । ऐसी विचित्र-विचित्र पुस्तकें गीताप्रेससे प्रकाशित
होती हैं, जिनको पढ़नेसे बड़ा लाभ होता है । उन पुस्तकोंको स्वयं भी पढ़ें
और दूसरोंको भी पढ़ाये । इससे बिना कौड़ी खर्च किये स्वाभाविक ही बड़ा उपकार होगा ।
गीताप्रेससे प्रायः ऐसी ही पुस्तकें प्रकाशित होती हैं, जिनके द्वारा दुनियाका हित हो । सेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दका और भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी
पोद्दारकी पुस्तकोंको पढ़नेसे बड़ा लाभ होता है, शान्ति मिलती है । गीताप्रेससे पद्मपुराण, स्कन्दपुराण आदि कई पुराण भी बड़ी मेहनतसे संक्षिप्त करके हिन्दीमें छापे गये हैं
। सम्पूर्ण महाभारत भी छपा है । महाभारतका संक्षिप्त हिन्दी अनुवाद भी छपा है । हर
महीने ‘कल्याण’ भी निकलता है । ‘कल्याण’ के अंक कभी पुराने नहीं होते । इसलिये आपके
पास पुराने अंक पड़े हों तो उनको भी पढ़ो और पढ़ाओ ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सन्त-समागम’ पुस्तकसे
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