।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन शुक्ल दशमी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
एकादशी-व्रत कल है 
कामना


(गत ब्लॉगसे आगेका)

कामनापूर्वक किया गया सब कार्य असत् है, उसका फल नाशवान् होगा ।
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कुछ भी चाहना गुलामी है और कुछ नहीं चाहना आजादी है ।
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         वस्तुके न मिलनेसे हम अभागे नहीं हैं, प्रत्युत भगवान्‌के अंश होकर भी हम नाशवान्‌ वस्तुकी इच्छा करते हैं‒यही हमारा अभागापन है ।
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         सुखकी इच्छासे ही द्वैत होता है । सुखकी इच्छा न हो तो द्वैत है ही नहीं ।
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         जबतक शरीरको अपना मानते रहेंगे, तबतक हमारी कामना नहीं मिट सकती ।
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         विचार करें, कामनाकी पूर्ति होनेपर भी हम वही रहते हैं और अपूर्ति होनेपर भी हम वही रहते हैं, फिर कामनाकी पूर्तिसे हमें क्या मिला और अपूर्तिसे हमारी क्या हानि हुई ? हमारेमें क्या फर्क पड़ा ?

गुरु और शिष्य

जो दुनियाका गुरु बनता है, वह दुनियाका गुलाम हो जाता है और जो अपने-आपका गुरु बनता है, वह दुनियाका गुरु हो जाता है ।
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कल्याण-प्राप्तिमें खुदकी लगन काम आती है । खुदकी लगन न हो तो गुरु क्या करेगा ? शास्त्र क्या करेगा ?
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जो हमसे कुछ भी चाहता है, वह हमारा गुरु कैसे हो सकता है ?
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पुत्र और शिष्यको अपनेसे श्रेष्ठ बनानेका विधान तो है, पर अपना गुलाम बनानेका विधान नहीं है ।
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गुरुमें मनुष्यबुद्धि करना और मनुष्यमें गुरुबुद्धि करना अपराध है, क्योंकि गुरु तत्त्व है, शरीरका नाम गुरु नहीं है ।
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  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘अमृतबिन्दु’ पुस्तकसे