‒ध्यानपूर्वक पढ़ें तथा विचार करें
२८. जीवमात्रको जीनेका अधिकार है । उसको गर्भमें ही नष्ट करके
उसके अधिकारको छीनना महान् पाप है ।
२९. जब मनुष्यकी हत्याको बहुत बड़ा पाप मानते हैं और अपराधी मनुष्यको
भी फाँसीकी सजा न देकर आजीवन कारावासकी सजा देते हैं,
तो फिर यह गर्भपात क्या है ?
क्या यह निरपराध मनुष्यकी हत्या नहीं है ?
३०. गर्भमें आये जीवको अनेक जन्मोंका ज्ञान होता है,
इसलिये भागवतमें उसको ‘ऋषि’
(ज्ञानी) नामसे कहा गया है । अतः
गर्भपात करनेसे एक ऋषिकी हत्या होती है । इससे बढ़कर और पाप क्या होगा ?
३१. लोग गर्भ-परीक्षण करवाते हैं और गर्भमें कन्या हो तो गर्भपात
करा देते हैं, क्या यह नारी-जातिको समान अधिकार देना है ?
क्या यह नारी-जातिका सम्मान करना है ?
३२. संसारी लोगोंकी दृष्टिमें जो सबसे बड़ा सुख है,
जिस सुखके बिना भोगी मनुष्य रह नहीं सकता,
जिस सुखका वह त्याग नहीं कर सकता,
उस सुखको देनेवाले गर्भकी हत्या कर देना कितना महान् पाप है
! यह पापकी, कृतघ्नता, दुष्टताकी, नृशंसताकी, क्रूरताकी, अमानुषताकी, अन्यायकी आखिरी हद है ! अर्थात् इससे बढ़कर अपराध कोई हो नहीं
सकता ।
३३. मनुष्यशरीरको बड़ा दुर्लभ बताया गया है । मनुष्यशरीरमें आकर
जीव अपना और दूसरोंका भी कल्याण कर सकता है । परन्तु उस जीवको ऐसा दुर्लभ मौका न मिलने
देना, संतति-निरोध करके उसको जन्म ही न लेने देना अथवा जन्म लेनेसे
पहले ही गर्भपात करके उसकी हत्या कर देना कितना महान् पाप है !
३४. जो माता-पिता अपने बच्चेका स्नेहपूर्वक पालन और रक्षा करनेवाले
होते हैं, वे ही अपने गर्भस्थ बच्चेकी हत्या कर देंगे तो किससे रक्षाकी
आशा की जायगी ?
नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
‒ ‘आवश्यक चेतावनी’ पुस्तकसे
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उपर्युक्त बातोंको विस्तारसे समझनेके लिये गीताप्रेस, गोरखपुरसे
प्रकाशित ये दो पुस्तकें अवश्य पढ़ें‒(१) महापापसे बचो (२) देशकी वर्तमान दशा तथा उसका
परिणाम ।
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