।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
वैशाख शुक्ल दशमीवि.सं.२०७४, शुक्रवार
एकादशी-व्रत कल है
संसारमें रहनेकी विद्या



(गत ब्लॉगसे आगेका)

ये माताएँ चाहें तो संसारका कल्याण कर सकती हैं, क्योंकि हम जितने भाई-बहिन हैं, ये सबसे पहले माँकी गोदमें आते हैं । माँकी गोदमें खेलते हैं । माँका दूध पीते हैं । माँके स्वभावका असर पड़ता है । महिलाएँ जैसी प्रकृति-(स्वाभाव-) की होंगी, वैसे ही बालक-बालिकाएँ होंगे, बच्चे वैसे ही नागरिक बनेंगे बड़े होकर, वैसा ही वह देश बनेगा । माँ छोटी अवस्थामें जो शिक्षा देती है, वह बहुत काम करती है; क्योंकि बचपनमें पड़े हुए संस्कार बहुत काम करते हैं । अतः माताएँ चाहें तो देशका बड़ा सुधार कर सकती हैं । मातओंमें मातृत्व-शक्ति होती है, ये उसका उपयोग करें । भगवान्‌ने इन्हें शक्ति दी है । ये छोटी-छोटी बालिकाएँ हैं, ये भी अपने भाई-बहिनका जैसा पालन करती हैं, बड़े लड़के अपने भाई-बहिनका वैसा पालन नहीं करते । आप छोटे भाई-बहिनको बड़े भाईकी गोदमें देकर देख लो, बहिनें बड़े प्यारसे पालन करती हैं । बहिनें अपनी चीजें भी छोटे भाई-बहिनोंको खिला देंगी । भाई अपनी आप खा जायगा और उनकी भी खा जायगा । बालिकाओंके हृदयमें यह भाव नहीं आता  कि यह चीज तो मेरी है, मैं क्यों दूँ ? तो यह भाव क्यों नहीं आता ? उसको पालन-पोषण करनेकी शक्ति भगवान्‌ने दी है, यह शक्ति माँ बननेके लिए दी है । यह जो शक्ति इन्हें दी है, यदि ये इस शक्तिका  सदुपयोग करें तो बहुत सुगमतासे निर्मम हो सकती हैं ।

         इसका कारण यह है कि सबका पालन-पोषण करना, सबकी रक्षा करना और सबको सुख देना–इनसे ममता दूर हो जाती है । सेवा करनेसे अभिमान दूर होता है । यह बड़े ऊँचे दर्जेकी बात कही गयी है । अगर यह व्यवहारमें आ जाय तो काम बन जाय । काम-धन्धा ठीक करें, चीजोंको उदारतासे बरतें, औरोंको देवें । दो-का विशेष आदर होता है; एक तो जो उपकार करते हैं और दूसरे, जो बड़े-बूढ़े पूजनीय होते हैं । बड़े-बूढ़े हैं, उनका आदर करें, आज्ञा मानें । जो दीन हैं, रोगी हैं, अभावग्रस्त हैं, उनकी सेवा करें । दीन-दुखियोंमें भगवान् रहते हैं । यदि उनकी सेवा की जाय तो आपकी सेवा स्वीकार करनेके लिए भगवान्‌ तैयार हैं । दीन-दुखियोंसे घृणा मत करो, द्वेष मत करो, इर्षा मत करो; अपनेमें अभिमान मत लाओ कि हम बड़े हैं । वास्तवमें आपमें जो बड़प्पन है, यह बड़प्पन उन छोटे आदमियोंका दिया हुआ है ।


         इसलिए उन गरीबोंको देनेसे धनका सदुपयोग होता है । धन होते हुए भी धनवत्ताका सुख देनेवाले गरीब हैं । जिनके दर्शनमात्रसे आपको प्रसन्नता होती है, उनकी सेवा करना आपका कर्त्तव्य है । बड़े-बूढोंने आपका पालन किया है, रक्षा की है, विद्या दी है, बुद्धि दी है, सम्पत्ति दी है । उनकी सेवा करना भी आपका कर्त्तव्य है । अतः उनकी सेवा करो । उन्हें सुख पहुँचाओ, इससे हमारेपर जो पुराना ऋण है, वह उतर तो नहीं सकता, पर माफ हो जायगा । सेवासे अभिमान नहीं होगा और संसारमें रहनेकी विद्या आ जायगी । ऐसे प्रेम और सेवा होगी तो संसारके लोग चाहेंगे । जो सेवा करनेवाले हैं, उनको सब लोग चाहते हैं ।

               (शेष आगेके ब्लॉगमें)
—‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे