Oct
31
(गत ब्लॉगसे आगेका)
परमात्मा किसी मूल्यके बदले नहीं मिलते । मूल्यसे वही वस्तु मिलती है, जो
मूल्यसे छोटी होती है ।
बाजारमें किसी वस्तुके जितने रुपये लगते हैं,
वह वस्तु उतने रुपयोंकी नहीं होती । हमारे पास ऐसी कोई
वस्तु (क्रिया और पदार्थ)
है ही नहीं, जिससे
परमात्माको प्राप्त किया जा सके । वह परमात्मा अद्वितीय है,
सदैव है, समर्थ है, सब समयमें है और सब जगह है । वह हमारा है और हमारेमें है—‘सर्वस्य चाहं हृदि संनिविष्टः’ (गीता
१५/१५), ‘ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति’ (गीता
१८/६१) । वह हमारेसे दूर नहीं है । हम चौरासी लाख योनियोमें चले जायँ
तो भी भगवान् हमारे हृदयमें रहेंगे । स्वर्ग या नरकमें चले जायँ तो भी वे हमारे
हृदयमें रहेंगे । पशु-पक्षी या वृक्ष बन जायँ तो भी वे हमारे हृदयमें रहेंगे । देवता बन जायँ तो भी वे हमारे हृदयमें
रहेंगे । तत्त्वज्ञ, जीवन्मुक्त बन जायँ तो भी वे हमारे हृदयमें रहेंगे । दुष्ट-से-दुष्ट, पापी-से-पापी, अन्यायी-से-अन्यायी बन जायँ तो भी भगवान् हमारे हृदयमें रहेंगे । ऐसे
सबके हृदयमें रहनेवाले भगवान्की प्राप्ति क्या कठीन होगी ? पर जीनेकी इच्छा, मानकी इच्छा, बड़ाईकी इच्छा, सुखकी इच्छा, भोगकी इच्छा आदि दूसरी इच्छाएँ साथमें रहते हुए भगवान् नहीं मिलते । कारण कि भगवान्के समान तो भगवान् ही हैं । उनके समान
दूसरा कोई था ही नहीं, है ही नहीं, होगा ही नहीं, हो सकता ही नहीं, फिर वे कैसे मिलेंगे ?
केवल भगवान्की चाहना होनेसे ही वे मिलेंगे । अविनाशी भगवान्के सामने नाशवान्की क्या कीमत है ?
क्या नाशवान् क्रिया और पदार्थके द्वारा वे मिल सकते हैं ?
नहीं मिल सकते । जब साधक भगवान्से
मिले बिना नहीं रह सकता, तब भगवान् भी उससे मिले बिना नहीं रहते; क्योंकि
भगवान्का स्वभाव हैं—‘ये
यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्’ (गीता
४/११) ‘जो भक्त जिस प्रकार मेरी शरण लेते हैं, मैं उन्हें उसी प्रकार आश्रय देता हूँ ।’
मान लें कि कोई मच्छर गरुड़जीसे मिलना चाहे और गरुड़जी भी
उससे मिलना चाहें तो पहले मच्छर गरुड़जीके पास
पहुँचेगा या गरुड़जी मच्छरके पास पहुँचेंगे ? गरुड़जीसे मिलनेमें मच्छरकी ताकत काम नहीं करेगी । इसमें तो गरुड़जीकी ताकत ही काम करेगी । इसी तरह परमात्मप्राप्तिकी
इच्छा हो तो परमात्माकी ताकत ही काम करेगी । इसमें हमारी ताकत, हमारे
कर्म, हमारा प्रारब्ध काम नहीं करेगा, प्रत्युत
हमारी चाहना ही काम करेगी । हमारी
चाहनाके सिवाय और किसी चीजकी आवश्यकता नहीं है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
—‘मानवमात्रके कल्याणके लिये’ पुस्तकसे
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