।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
   कार्तिक कृष्ण अष्टमी, वि.सं.-२०७४, शुक्रवार
सत्यकी स्वीकृतिसे कल्याण



(गत ब्लॉगसे आगेका)


  मन-बुद्धि चाहे आपके हों, चाहे कुत्तेके हों, उनसे आपका कोई सम्बन्ध नहीं है । कुत्तेके मन-बुद्धिपर असर पड़ता है तो क्या आप सुखी-दुःखी होते हो ? जैसे कुत्तेके मन-बुद्धि आपके नहीं हैं, ऐसे ही आपके मन-बुद्धि भी वास्तवमें आपके नहीं हैं । मन-बुद्धिको अपना मानना ही मूल गलती है । इनको अपना मानकर आप मुफ्तमें ही दुःख पाते हो !

   एक मार्मिक बात है कि हमारे और परमात्माके बीचमें जड़ता (शरीर-संसार) का परदा नहीं है, प्रत्युत जड़ताके सम्बन्धका परदा है । यह बात पढ़ाईकी पुस्तकोंमें, वेदान्तके ग्रन्थोंमें मेरेको नहीं मिली । केवल एक जगह सन्तोंसे मिली है । इसलिये शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धिसे हमारा बिलकुल सम्बन्ध नहीं है–ऐसा स्वीकार कर लो तो आप निहाल हो जाओगे ।

    प्रश्न–जड़ताका सम्बन्ध छोड़नेके लिये क्या अभ्यास करना पड़ेगा ?

   उत्तर–जड़ताका सम्बन्ध अभ्याससे नहीं छूटता, प्रत्युत विवेक-विचारसे छूटता है । यह अभ्याससे होनेवाली बात है ही नहीं । विवेकको आदर करो तो आज ही यह सम्बन्ध छूट सकता है । आप दो बातोंको स्वीकार कर लें–जानना और मानना । जड़के साथ हमारा सम्बन्ध नहीं है–यह ‘जानना’ है और हमारा सम्बन्ध भगवान्‌के साथ है–यह ‘मानना’ है । अनन्त ब्रह्माण्डोंमें केश-जितनी चीज भी हमारी नहीं है–यह जाननेपर जड़ताका असर नहीं पड़ेगा । इसमें अभ्यास काम नहीं करता, पर विवेकसे तत्काल काम होता है । आपपर असर नहीं पड़ता, आप वैसे-के-वैसे ही रहते हो । वास्तवमें मुक्ति स्वतः-स्वाभाविक है । मुक्ति होती नहीं है, प्रत्युत मुक्ति है । जो होती है, वह मिट जाती है और जो है, वह कभी मिटती नहीं–

‘नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः’
                                     (गीता २।१६)

    ‘असत्‌की सत्ता विद्यमान नहीं है और सत्‌का अभाव विद्यमान नहीं है ।’

  आपने असरको सच्चा मान लिया, जो कि असत् है, झूठा है । मन-बुद्धिके साथ आपका सम्बन्ध है ही नहीं । श्रीशरणानंदजी महाराजसे किसीने पूछा कि कुण्डलिनी क्या होती है ? उन्होंने उत्तर दिया कि कुण्डलिनी क्या होती है–यह तो हम जानते नहीं, पर इतना जरूर जानते हैं कि कुण्डलिनीके साथ हमारा सम्बन्ध नहीं है । कुण्डलिनी सोती रहे अथवा जाग जाय, हमारा उससे क्या मतलब ? ऐसे ही शरीर-संसारके साथ हमारा सम्बन्ध ही नहीं है । अतः उसके असरका आदर मत करो । यह अभ्याससे नहीं होगा । अभ्याससे कुछ लाभ नहीं होगा । अभ्याससे तत्त्वज्ञान कभी हुआ नहीं, कभी होगा नहीं, कभी हो सकता नहीं । विवेकका आदर करो तो आज ही, अभी निहाल हो जाओगे ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘सत्यकी खोज’ पुस्तकसे