Nov
25
भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय
१. भगवत्प्राप्तिकी सच्ची लगन होना
(गत ब्लॉगसे आगेका)
(४)
असत्को ‘मैं’ और
‘मेरा’
मान लिया-मूलमें यहाँसे भूल हुई । यही मूल भूल है
। इस भूलको मिटाकर अपने निर्विकार
स्वरूपमें स्थित हो जाओ । जबतक मूल भूल न मिटे, तबतक
चैन नहीं आना चाहिये । छोटा बालक
हर समय अपनी माँकी गोदीमें रहना चाहता है । गोदीसे नीचे उतरते ही वह रोने लग जाता है
। आप भी हर समय सत् (भगवान्)-की गोदीमें रहो । असत्में जाते ही रोने लग जाओ कि अरे
! कहाँ आ पड़े हम तो गोदीमें ही रहेंगे । फिर असत्का सम्बन्ध सुगमतासे छूट जायगा ।
(५)
मैं शरीरसे अलग हूँ‒ऐसा अनुभव न हो तो भी इसको जबर्दस्ती
मान लो । जैसे बीमारीसे
छूटनेके लिये आप कड़वी-से-कड़वी दवा, चिरायते आदिका काढ़ा भी आँखें मीचकर पी लेते हो,
ऐसे ही स्वस्थ होनेके लिये आप ‘मैं अलग हूँ’‒ऐसा मान लो । फिर भी ठीक अलग न दीखे
तो व्याकुल हो जाओ कि अलग अनुभव जल्दी कैसे हो ! व्याकुलता जोरदार हो जायगी तो चट अनुभव
हो जायगा । परन्तु भोगोंमें रस लेते रहोगे, सुख
लेते रहोगे तो चाहे कितना ही पढ़ जाओ,
पण्डित बन जाओ, चारों
वेद पढ़ जाओ, पर शरीरसे अलगावका अनुभव कभी नहीं होगा ।
(६)
जिस दिन साधकके भीतर यह उत्कट अभिलाषा जाग्रत् हो
जाती है कि परमात्मा अभी ही प्राप्त होने चाहिये, अभी.....अभी.....अभी, उसी
दिन उसे परमात्मप्राप्ति हो सकती है ! साधककी योग्यता, अभ्यास आदिके बलपर परमात्माकी प्राप्ति हो जाय‒यह सर्वथा असम्भव
है । परमात्माकी
प्राप्ति केवल उत्कट अभिलाषासे ही हो सकती है । आप
सगुण या निर्गुण, साकार या निराकार, किसी भी तत्त्वको मानते हों,
उसके बिना आपसे रहा नहीं जाय,
उसके बिना चैन न पड़े । भक्तिमती मीराबाईने कहा है‒‘हेली म्हास्यूँ हरि बिनु रह्यो न जाय’ ‘हे सखी, मुझसे हरिके बिना रहा नहीं जाता ।’ निर्गुण उपासकोंने भी यही कहा है‒
चितवन मोरी तुमसे लागी पिया ।
दिन
नहि भूख रैन नहि निद्रा,
छिन
छिन व्याकुल होत हिया ॥
तत्त्वकी प्राप्तिके बिना दिनमें भूख नहीं लगती और रातमें नींद
नहीं आती ! आप कैसे मिलें ! क्या करूँ ! हृदयमें क्षण-क्षण व्याकुलता बढ़ रही है । उसे
छोड़कर और कुछ सुहाता नहीं । सन्तोंने भी कहा है‒
नारायन हरि लगन में, ये पाँचों न सुहात
।
विषयभोग, निद्रा, हँसी, जगत
प्रीत, बहु बात ॥
ये विषयभोगादि पाँचों चीजें जिस दिन सुहायेंगी नहीं,
अपितु कड़वी अर्थात् बुरी लगेंगी,
भगवान्का वियोग सहा नहीं जायगा,
उसी दिन प्रभु मिल जायँगे !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे
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