Jan
31
(गत ब्लॉगसे आगेका)
अपने-आपको भगवान्के चरणोंमें
अर्पण कर दो, उनके शरण हो जाओ । शरण
होना भी ऐसा होना चाहिये कि सर्वथा ही शरण हो जाय अर्थात् मैं हूँ ही नहीं, केवल भगवान् ही हैं ! मेरा कुछ नहीं है, मुझे कुछ नहीं चाहिये और मैं कुछ नहीं
। मेरी जगह केवल भगवान् ही हैं ।
अपना कुछ है ही नहीं, मेरेको कुछ चाहिये ही नहीं, फिर चिन्ता किस बातकी ? शोक किस बातका ? भय किस बातका ? पर ममता करोगे
तो दुःख पाओगे ।
लोग कहते हैं कि आजकल कलियुगके ब्राह्मण अच्छे नहीं हैं
। क्या क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र अच्छे हैं ? पहलेवाले क्षत्रियों आदिके लिये पहलेवाले ब्राह्मण अच्छे थे, आजवाले क्षत्रियों आदिके लिये आजवाले ब्राह्मण अच्छे हैं । अगर पतन हुआ है
तो चारों ही वर्णोंका पतन हुआ है । एक ब्राह्मणने कहा कि आप क्षत्रिय हो । रामजीने
समुद्रपर पहाड़ तैरा दिये, आप कुण्डीभर पानीमें एक कंकड़ तैरा दो
। उस क्षत्रियने कहा कि आप ब्राह्मण हो, अगस्त्यने समुद्र पी
लिया, आप कुण्डीका जल पी जाओ ! इसलिये किसीको खराब मत समझो । न किसीको बुरा समझो, न बुरा चाहो, न बुरा करो
। इससे आपको कोई नुकसान नहीं होगा, कोई बाधा नहीं लगेगी ।
श्रोता‒भगवान् हमारा
हित चाहते हैं तो हमें
दुःखालय संसारमें क्यों भेज दिया
?
स्वामीजी‒आपकी रुचिसे भेजा ! जैसे, आपके पिता पैसे कमाते हैं और पैसोंका सदुपयोग करना चाहते हैं, फिर वे आपके लिये मिट्टी आदिके नकली खिलौने क्यों लाते हैं ? कारण यह है कि बालक वैसा ही चाहता है । आप नहीं चाहो तो बिल्कुल नहीं देंगे......बिल्कुल नहीं देंगे ! यह संसार मिट्टीका खिलौना है ।
आप नहीं चाहो तो यह साक्षात् परमात्माका स्वरूप है । केवल
अपनी कामना, वासनासे संसार दीखता
है । वास्तवमें संसार नहीं है । यह सब साक्षात् परमात्मा है । भगवान्के प्रेमी सन्त-महात्मा
कभी संसारमें फँसते ही नहीं । उनकी दृष्टिमें संसार है ही नहीं !
श्रोता‒मैं ‘शिवोऽहम् शिवोऽहम्’‒इस गुरु-मन्त्रका जप करती हूँ । और
भी कुछ करना है या
यही ठीक है ?
स्वामीजी‒आपको ‘शिवोऽहम्’
का जप करनेकी जरूरत नहीं है । स्त्रियोंको गुरु बनानेकी जरूरत नहीं है‒‘पतिरेव गुरुः स्त्रीणाम्’ । जिनको गुरु बननेकी शौक है, उन्होंने ही इसका प्रचार
किया है । अगर बहन पढ़ी हुई हो तो ‘क्या गुरु बिना मुक्ति नहीं’ (गीताप्रेस,
गोरखपुरसे प्रकाशित) पुस्तक पढ़ो । राम-राम करो तो कल्याण हो जायगा, सीधी-सी बात है ! इसका कहीं निषेध नहीं आता । ‘ॐ’ आदिके उच्चारणमें
तरह-तरहके मतभेद हैं, पर राम-नामके उच्चारणमें कोई मतभेद नहीं है ।
जाट भजो गूजर भजो भावे भजो अहीर ।
तुलसी रघुबर नाम में सब काहू का सीर
॥
मैंने देखा है कि जिनका गायत्री-मन्त्रमें अधिकार नहीं
है, वे भी गायत्रीका जप इसलिये करते हैं कि इससे हम ऊँचा उठ जायँगे
। उनका वास्तवमें पतन होगा । यह कोरा अभिमान है ! अभिमानसे ब्राह्मणका
भी पतन हो जाता है । पर आज बड़ा होनेके लिये गायत्रीका जप करते हैं । मनमें बड़ा होनेकी
इच्छा है, कल्याणकी इच्छा नहीं है । बड़ा होनेकी इच्छासे कल्याण
तो होगा ही नहीं, उल्टे पतन होगा ! सीधी
बात है कि राम-राम करो ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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