(गत ब्लॉगसे आगेका)
अभी भगवान्को भक्ति
देनी है‒ऐसा कई बातोंसे अनुमान होता है ! नहीं तो ‘अनुभव भगवद् भगति का भाग्यवान् को होय’ भक्तिका अनुभव हरेकको होता
नहीं । भक्ति करते रहते हैं, पर पता नहीं लगता । परन्तु आजकल
विशेषतासे पता लगता है ! अभी भगवान्का
मन भक्तिका प्रचार करनेका है । इसलिये बहुत सुगमतासे तत्त्व प्राप्त हो सकता है । थोड़ा
भजन करनेपर भी विलक्षणता, अलौकिकता, विचित्रता
आती है । अतः आपलोग चेष्टा करो तो भगवान्के अच्छे भक्त बन सकते
हो ।
शरणागतिमें अपने-आपको भगवान्के सर्वथा
समर्पित कर दे कि भगवान् ही हैं, मैं हूँ ही नहीं । मैं-पन कल्पित है, सच्चा नहीं है । इसलिये अपनी सत्ता तो
रहती है, पर मैं-पन मिट जाता है । मैं-पन
मिटते ही भगवान्के साथ अभेद हो जाता है । अभेद होनेपर फिर भगवान्की तरफसे भेद होता है । वह अद्वैतभक्ति होती है ।
स्वयं भगवान् उस प्रेमरसके भूखे हैं
। प्रेमसे भगवान् तृप्त हो जाते हैं । भगवान्को तृप्त करनेकी ही
भक्तकी भावना होती है । भगवान् भी प्रतीक्षा करते हैं कि ऐसा भक्त मेरेको मिले !
भगवान्की भूख कैसी होती है‒यह भगवान् जानें, उनके भक्त जानें !
सज्जनो ! आप तो रात-दिन भगवान्में लग जाओ । अपने भीतर उत्कट अभिलाषा जाग्रत् करो कि भगवान्में प्रेम हो जाय । उठते-बैठते, जागते-सोते एक भगवान् ही याद आयें । ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’‒यह बहुत बढ़िया मन्त्र है !
श्रोता‒अपने जिन संस्कारोंको हम बदलना
चाहते हैं, उनको बदलनेका सबसे बढिया उपाय क्या
है ?
स्वामीजी‒सबसे बढ़िया उपाय है‒उद्देश्य
बदल देना । विचार करें कि हमारे जीवनका उद्देश्य क्या है ? हमें अपने जीवनमें क्या करना है ?
वास्तवमें हमारे जीवनका उद्देश्य परमात्माकी प्राप्ति करना होना चाहिये
। इसके सिवाय किसीसे कोई मतलब नहीं । कोई राजी हो या नाराज हो, ठीक हो या बेठीक हो, नफा हो या नुकसान हो, लाभ हो या हानि हो, अनुकूलता मिले या प्रतिकूलता मिले,
अपने उद्देश्यपर दृढ़ रहे । इसमें ढुलमुलपना न रहे, सन्देह न रहे । सुख पायें, चाहे दुःख पायें, हमें आध्यात्मिक उन्नति करना है ।
श्रोता‒हमारा यह वहम है कि
हमलोग परिवारका पालन-पोषण करते हैं, तभी काम चलता
है । यह वहम कैसे निकले ?
स्वामीजी‒गीताप्रेसमें सेठजी (श्रीजयदयालजी गोयन्दका)
सबसे मुख्य थे, पर उनके जानेपर भी गीताप्रेसका
काम बढ़ा है, घटा नहीं है ! गीताप्रेसको
सेठजीने ही बनाया था । सेठजीने जितना उद्योग किया है, वैसा उद्योग
हर आदमी कर सकता नहीं ! ताकतसे बाहरकी बात है ! सेठजीके समान शक्तिशाली मेरेको कोई दीखा नहीं ! सेठजीने
जितना काम किया है, उतना और किसीने किया हो तो बताओ !
वे भी चले गये ! भाईजी भी चले गये ! मुख्य-मुख्य आदमी चले गये, फिर
भी काम चलता है ! काम घटा नहीं है, प्रत्युत
बहुत ज्यादा मात्रामें बढ़ा है ! इतना उनके मौजूद रहते समय नहीं
था । सत्संगमें पहलेसे अधिक उपस्थिति होती है, कागज पहलेसे ज्यादा
छपता है, पुस्तकोंकी बिक्री भी ज्यादा होती है ! अतः मेरे रहनेसे काम चलता है, मैं नहीं रहूँगा तो काम नहीं होगा‒यह कोरा वहम है । जो होना है, वह तो होगा । हमारे समान
कई चले गये, फिर भी संसार चलता है ।
आप अपना एक उद्देश्य बना लो । फिर सब काम ठीक हो जायगा
। घरवालोंकी चिन्ता मत करो कि कैसे काम चलेगा !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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