।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण षष्ठी, वि.सं.-२०७४, बुधवार
                   मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

मिली हुई चीज केवल संसारकी सेवाके लिये है । उसको अपनी नहीं मानो और संसारकी सेवा करो तो कल्याण हो जायगा, मुक्ति हो जायगी ।

जो कुछ देखनेमें, सुननेमें, समझनेमें आता है, वह सब कुछ भगवान्‌का है । यह पहली बात है । उसको अपना न मानकर भगवान्‌का मानो तो आपका साधन शरू हो गया । उसको अपना मानो तो साधन शुरू नहीं हुआ । दूसरी एक मार्मिक बात है कि सांसारिक वस्तुएँ हमारे लिये भी नहीं हैं । ये भगवान्‌की हैं और भगवान्‌के लिये हैं । हमारी नहीं हैं और हमारे लिये भी नहीं हैये दो बातें मान लो, फिर सब काम ठीक हो जायगा । मूलमें सब संसारके मालिक भगवान् हैं । भगवान्‌की चीजोंको आप अपनी क्यों मानते हो ? राजकीय चीजपर कोई कब्जा करता है, उसको दण्ड होता है । वे चीजें आपको उपयोग करनेके लिये मिली हैं । जैसे, यह पण्डाल आपको बैठकर सत्संग करनेके लिये दिया हुआ है, अपना व्यक्तिगत नहीं है । यह भगवान्‌का है, हमारा नहीं है ।

श्रोताध्यान भगवान्‌के मुखारविन्दका करना चाहिये या चरणोंका करना चाहिये ?

स्वामीजीभावके अनुसार अलग-अलग ध्यान होगा । अगर भगवान्‌में पुत्रभाव हो तो मुखका ध्यान अपने-आप होगा । अगर दास्यभाव हो तो चरणोंका ध्यान होगा ही । आपको भगवान्‌का मुख अच्छा लगता है या चरण अच्छे लगते हैं ? अगर मुख अच्छा लगे तो पुत्रभाव है । अगर चरण अच्छे लगें तो दास्यभक्ति है । चरणोंका ध्यान करना सबसे बढ़िया है । चरणोंमें विष्णु भगवान् विराजते हैं ।

श्रोतासब कुछ भगवान्‌का है और सब कुछ भगवान् ही हैये दो बात है या एक बात है ? दो बात है तो इनमें क्या अन्तर है ?

स्वामीजी‘सब कुछ भगवान्‌का है’यह पहली सीढ़ी है । दूसरी सीढ़ी है‘सब कुछ भगवान् ही हैं’ । इसके आगे हैएक भगवान्‌के सिवाय कुछ हुआ ही नहीं । सबसे पहले यह मान लेना चाहिये कि सब कुछ भगवान्‌का है, भगवान् सबके मालिक हैं ।

श्रोतास्मृतिका क्या स्वरूप है ?

स्वामीजीस्मृतिका स्वरूप हैभूल मिटना । भगवान्‌को भूल गये । अरे ! सब कुछ भगवान् ही हैं‒यह स्मृति है ।

श्रोताप्रेम और स्मृतिमें क्या सम्बन्ध है ?

स्वामीजीस्मृतिके बाद प्रेम हो जाता है । भगवान् मेरे हैं; भगवान्‌के सिवाय और कोई मेरा नहीं हैयह स्मृति हो गयी । इसके बाद भगवान्‌में प्रेम हो जाता है ।

श्रोतामेरा नाम-स्मरणमें बड़ा मन लगता है, लेकिन लीला-चिन्तन बड़ा कठिन पड़ता है, क्या करूँ ?

स्वामीजीकोई हर्ज नहीं, नामजप ही करो । जिसमें आपका मन लगे, वह साधन बढ़िया होता है । जो स्वतः होता है, वह बढ़िया होता है । बलपूर्वक किया हुआ साधन बढ़िया नहीं होता ।

श्रोताभण्डारेमें भोजन करते हैं तो भण्डारा करवानेवालेका पाप हमें लगता है क्या ?


स्वामीजीभण्डारा बढ़िया नहीं है; क्योंकि सकामभावसे करते हैं । लोग मृत्यु-समयमें निकाल देते हैं, खराब भावसे निकाल देते हैं, इसलिये वह अन्न अच्छा नहीं है । वह अन्न बाधा देता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे