May
31
आप किसीके चेला बन जाओ तो कुछ फर्क नहीं पड़ेगा,
पर भगवान्के हो जाओ तो आपका जीवन शुद्ध,
निर्मल हो जायगा । आप इतने पवित्र हो जाओगे कि आपके दर्शनोंसे
लोग पवित्र हो जायँगे ! आपका सम्बन्ध, आपके वचन, आपकी हवा पवित्र करनेवाली हो जायगी ! युधिष्ठिरजी महात्मा विदुरजीसे
कहते हैं‒
भवद्विधा भागवतास्तीर्थभूताः
स्वयं विभो ।
तीर्थिकुर्वन्ति तीर्थानि स्वान्तःस्थेन गदाभृता ॥
(श्रीमद्भा॰ १ । १३ । १०)
‘प्रभो ! आप-जैसे भगवान्के प्यारे भक्त स्वयं ही तीर्थस्वरूप होते हैं । आपलोग
अपने हृदयमें विराजमान भगवान्के प्रभावसे तीर्थोंको भी महातीर्थ बनाते हुए विचरण करते
हैं ।’
भक्तोंके चरण-स्पर्शसे अतीर्थ भी तीर्थ हो जाते हैं ! लोगोंके
पाप दूर करते-करते तीर्थ कलुषित हो जाते हैं,
पर भक्तोंके चरण-स्पर्शसे वे भी पवित्र हो जाते हैं ।
चेला बननेसे आप पवित्र नहीं होओगे,
पर भगवान्के हो जानेसे आप पवित्र हो जाओगे । भगवान्के तो आप
पहलेसे हो ही, केवल आपको स्वीकार करना है । आप भगवान्के
हो जाओ‒यह असली चीज है । आप गुरुके हो जाओ‒यह बनावटी चीज है । आप बनावटी चीजको मानकर
असली चीजका तिरस्कार कर रहे हो ! भगवान्ने तो आपको अपना मान ही रखा है,
आप भी आज स्वीकार कर लो कि हम भगवान्के हैं ।
श्रोता‒स्वरूपका
बोध कैसे हो ?
स्वामीजी‒जो स्वरूप नहीं है, उसका त्याग कर दो तो स्वरूपका बोध हो जायगा । जड़ताका त्याग होनेपर
स्वरूप-बोध हो ही जाता है । कम-से-कम ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’‒इसकी भीतरसे रटन लगा दो । स्वरूपका बोध,
परमात्मतत्त्वका ज्ञान,
जीवन्मुक्ति आदि सब हो जायँगे ! आप करके देखो,
बहुत लाभ होगा । जब नींद खुले,
तबसे लेकर जब गाढ़ नींद आ जाय,
तबतक ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’‒यह कहते ही रहो ।
श्रोता‒हम
भगवान्से दूर क्यों हुए ?
स्वामीजी‒भगवान् अविनाशी हैं, संसार नाशवान् है । आप अविनाशीको छोड़कर नाशवान् भोग और संग्रहमें
लग गये, इसलिये भगवान्से दूर हो गये । अगर नाशवान्में न लगें तो भगवान्की
प्राप्ति हो जायगी; नहीं हो तो मेरा कान पकड़ना ! आप नाशवान् चीजोंका आदर छोड़ दें
। जिसका संयोग और वियोग होता है, जो
मिलती और बिछुडती है, वह चीज आपकी होती ही नहीं । उसको आपने अपना मान लिया, इसीलिये
भगवान्से अलग हो गये ।
सर्वसमर्थ भगवान्में भी यह सामर्थ्य नहीं है कि
आपसे अलग हो जायँ । आप ही भगवान्से विमुख हुए हैं ।
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